पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥।
नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥1॥
(सप्त प्रस्न :सब ते दुर्लभ कवन सरीरा
,बड़ दु:ख कवन,कवन सुख भारी,संत असंत सहज सुभाव,कवन पुन्य बिसाला,
कवन अघ परम कराला
,मानस रोग कहहु समुझाई)
प्रस्तुत है मुख्यरख्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 03 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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674 वां सार -संक्षेप
1=पथ -प्रदर्शक
साहित्य के साथ कथा में इतिहास को पिरोना श्रीरामचरित मानस की अद्वितीय लोकप्रियता का कारण है सहृदय लोगों के लिए तो अत्यन्त सहज और प्रिय विशेषतः हम उत्तरभारतीय लोगों के लिए
आइये प्रवेश करते हैं इसी अद्भुत कृति के उत्तरकांड में
सात प्रश्नों के उत्तर मिलने प्रारम्भ हो चुके हैं कागभुशुंडी कहते हैं
सबसे दुर्लभ मनुष्य का शरीर है
भगवान् राम ने भी तिलक होने के बाद प्रजा को उपदेश देते समय कहा था
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥
दरिद्रता के समान कोई दुःख नहीं संत मिलन के समान कोई सुख नहीं
धन आवश्यक तो है लेकिन धन ही आवश्यक है संतुष्टि के लिए यह जरूरी नहीं
मन, वचन एवं शरीर से परोपकार करना ही संतों का सहज स्वभाव है
प्रदर्शन के लिए नहीं, वास्तव में उनके मन में एक भाव रहता है कि दूसरे का कल्याण हो
भूर्ज तरू सम संत को सदैव अनुभव होता रहता है कि संपूर्ण संसार दुःख का आगार है संत शान्त भी होते हैं
श्रीवाल्मीकि रामायण में पक्षीराज और कागभुशुंडी जी का संवाद नहीं दिया गया है
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥
आचार्य जी ने प्रेम और मोह में अन्तर स्पष्ट किया
प्रेम अन्धा नहीं होता मोह अन्धा होता है प्रेम ही ईश्वर है
प्रेम में समर्पण है त्याग है
राधा कृष्ण के बीच , राम सीता के बीच अप्रतिम आदर्श प्रेम है
अनुरक्ति भक्ति में परिवर्तित हो जाती है तो त्याग का प्रतीक हो जाती है
षड्विकारों में मोह है प्रेम नहीं
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया शीलेन्द्र जी, धीरेन्द्र शास्त्री का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें