6.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 06 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः l


जो श्रद्धावान् तत्पर और संयतेन्द्रिय  होता है वह अवश्य ही ज्ञान  प्राप्त कर लेता है

श्रद्धा,तत्परता और संयम द्वारा जीवत्व के बन्धनों से मुक्त होकर हम सुरत्व को प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं।


प्रस्तुत है सुर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 06 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  677 वां सार -संक्षेप

1=विद्वान पुरुष


हम लोगों के लिए अत्यन्त लाभकारी इन वेलाओं से हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय कर्मानुराग पुरुषार्थ के लिए प्रेरित होते हैं

हमें  सशंकित नहीं सचेत रहना है अंधे होकर चलने की आवश्यकता नहीं है

आज की परिस्थितियां भिन्न हैं आत्मदीप होकर राष्ट्रभक्त समाज को भी प्रेरित करें सचेत करें सावधान करें

देशभक्ति की राह पर देशसेवा का संकल्प लेकर हमें चलते रहना है देश सेवा समाजसेवा के लिए हमें सदैव तत्पर रहना है 



आचार्य जी ने सरौंहां में संघ कार्यालय जिसे पहले संघ लाज संघ निवास भी कहा गया,की चर्चा की जिसमें उन्होंने बताया कि महापुरुषों के लगे चित्रों ने किस प्रकार प्रेरित किया

कारज की ज्योत सदा ही जरे

(अमर ज्योति फिल्म के गीत की पंक्तियां )


आचार्य जी ने इन स्थानों को मुक्त विद्यालय कहा

जहां से अद्भुत संस्कार मिले


श्रीरामचरित मानस ग्रंथ हमें प्रेरित करता है कि अध्यात्म के साथ शौर्य भी आवश्यक है

हम अतुलित बल प्राप्त कर सकें इसकी प्रेरणा मिलती है

यह कृति हमें 

मोहान्धता के सागर में डूबने से बचाती है 


शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥



प्रभु राम राजाओं के भी राजा हैं क्योंकि वे सबकी सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं

उनसे हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने दोषों को दूर करें दोष विकार पैदा करते हैं


आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में


सुमिरि राम के गुन गन नाना। पुनि पुनि हरष भुसुंडि सुजाना॥

महिमा निगम नेत करि गाई। अतुलित बल प्रताप प्रभुताई॥1॥



श्रीराम जी के बहुत से गुण समूहों का स्मरण करते हुए सुजान कागभुशुण्डिजी बार-बार हर्षित हो रहे हैं। जिनकी महिमा वेदों ने 'नेति-नेति' कहकर कही है, जिनका बल, प्रताप और सामर्थ्य अतुलनीय है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें