7.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष तृतीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 07 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥

सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥2॥

लेकिन आचार्य जी प्रायः बताते रहते हैं कि 

भक्त का अर्थ माला जपना नहीं है भक्त वही है जिसे आत्मबोध है जो शौर्य शक्ति संपन्न है आशावान् है राष्ट्र के प्रति निष्ठावान है समर्पित है


प्रस्तुत है हर्षण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

तृतीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 07 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  678 वां सार -संक्षेप

1=प्रसन्न करने वाला


हमें बचपन से ही इस प्रकार के संस्कार मिले हैं कि हम स्वयं तो सदाचारमय विचार ग्रहण कर अपने जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास करते ही हैं साथ ही संपर्क में रहने वाले लोगों को भी प्रेरित करते हैं ये सदाचार वेलाएं सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का अच्छा माध्यम हैं

ये भावनात्मक सत्संग की वेलाएं हैं



जैसा युग है उस युग की परिस्थितियों को समझते भांपते हुए हमको अपने जीवन को उसके अनुकूल बनाकर संसार के सत्य को जानते रहना और बताते रहना हमारा उद्देश्य होना चाहिए  हमें अपनी योजनाएं युगानुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए युगपुरुष पं दीनदयाल जी अपनी योजनाएं इसी प्रकार की बनाते थे


भयानक प्रवाह को धीरे धीरे काटकर अपनी मंजिल प्राप्त करने का प्रयास हमें करना ही चाहिए

हम युगभारती के सदस्यों का परस्पर का व्यवहार ये वेलाएं

हमारे सद्ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं हमें अपने अनुकूल तत्त्व को खोज लेना चाहिए


आज कल हम लोग ज्ञान से भरपूर उत्तरकांड के अंतिम पड़ाव पर हैं

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अप्रतिम स्वरूप वाले अतुलनीय शक्तिसम्पन्न मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी को परमपिता परमेश्वर का अवतार


कविं पुराणमनुशासितार


मणोरणीयांसम् .......

 

सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप



मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्



सर्वज्ञ, पुराण, शासन करने वाला, सूक्ष्म से सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करने में सक्षम , अज्ञान से अत्यन्त परे , सूरज के समान प्रकाशस्वरूप है






 माना है उन्हें विष्णु का अवतार नहीं माना है


भगवान राम का स्मरण आत्मस्मरण है रामत्व का हमारे अन्दर जितना प्रवेश होगा हम उतने ही आनन्द में रहेंगे

संसार की समस्याएं हम आसानी से सुलझा लेंगे


आइये प्रवेश करते हैं उत्तरकांड में



तासु चरन सिरु नाइ करि प्रेम सहित मतिधीर।

गयउ गरुड़ बैकुंठ तब हृदयँ राखि रघुबीर॥125 क॥





कागभुशुण्डिजी के चरणों में प्रेम सहित सिर नवाकर और हृदय में श्रीराम को धारण करके धीरबुद्धि गरु़ड़ जी तब वैकुंठ को चले गए

भगवान् की कृपा से ही अपनी मति शुद्ध होती है

परमात्मा सदा अच्छा ही करता है


पक्षीराज जी को त्रेता में शंका हुई द्वापर भर परेशान रहे कलयुग में उन्हें कागभुशुंडी जी के दर्शन हुए

हमारी संस्कृति को पांच हजार वर्ष पुरानी कहने वालों को कालगणना का ज्ञान नहीं है


जिस दिन नभ में तारे छिटके,

जिस दिन सूरज-चांद बने,

तब से है यह देश हमारा,

यह अभिमान हमारा है।




मन क्रम बचन जनित अघ जाई। सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई॥



जो कान  लगाकर, मन लगाकर इस कथा को सुनते हैं, उनके मन, वचन और कर्म  से उत्पन्न सब पाप नष्ट हो जाते हैं



इसके अतिरिक्त


आचार्य जी ने बताया कि विद्यालय जब प्रारम्भ हुआ था तब अनेक कष्ट आये थे


आचार्य जी आज कानपुर आ रहे हैं

और

12/13 से 19 जून तक वे चित्रकूट प्रवास पर रहेंगे


उत्तरकांड में आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें