सदा दिन में परिश्रम रात में विश्राम होता है
उजाला कर्मयोगी है अँधेरा काम होता है
अँधेरे से उजाले की तरफ की दौड़ जारी है
कि देखो किस समय कोई सुखद परिणाम होता है।
प्रस्तुत है हस्ताहस्ति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
चतुर्थी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 08 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
679 वां सार -संक्षेप
1=कुशल
अध्येता चिन्तक विचारक ज्ञानी आचार्य जी द्वारा प्रतिदिन हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं सुदृढ़ भावों वाली आकर्षक अभिव्यक्तियां हमें इस वेला में प्रवेश करा देती हैं
उपनिषद विशद ज्ञान के भंडार हैं अत्यन्त रोचक हैं
ब्रह्मविद्या के सम्बन्ध में जिज्ञासा व्यक्त करने वाले मुंडकोपनिषद में
नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्।
एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वांस्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम ॥
अन्वय
अयम् आत्मा बलहीनेन न लभ्यः प्रमादात् च न वा अलिङ्गात् तपसः अपि न लभ्यः यः विद्वान् एतैः उपायैः यतते तस्य एषः आत्मा ब्रह्मधाम विशते ॥
परमात्मा बलहीन मनुष्य के द्वारा नहीं पाया जा सकता , न ही प्रमादी द्वारा और न ही लक्षणहीन तपस्या के द्वारा , लेकिन जब कोई विद्वान् इन उपायों के द्वारा प्रयत्न कर लेता है तो उसका आत्मा ब्रह्म-धाम में प्रवेश कर ही जाता है
समस्त भोगों की आशा त्याग कर एक मात्र परमात्मा की उत्कट अभिलाषा रखते हुए निरन्तर विशुद्ध भाव से अपने इष्ट देव का चिन्तन करने पर
भोग, जो रोग के कारण हैं, की लालसा न रख सात्विक होते हुए कर्म की लालसा रखने पर ब्रह्मधाम में प्रवेश मिल जाता है
मानस और गीता में भी यही बताया गया है
भ्रामक स्थितियां पैदा कर शिक्षा दूषित कर हमें बल अनावश्यक बताया गया जब कि शरीर पुष्ट करना अनिवार्य होता है प्रातः जल्दी जागना अनिवार्य है शिक्षा को नौकरी से संयुत कर दिया गया
सात्विक जीवन जीने का प्रयास करें कर्तव्य का बोध रखें
शरीर हेतु बल शक्ति संयम समर्पण अनिवार्य है शरीर हमारा साधन है
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥
न शरीर की उपेक्षा करें न उससे बहुत अपेक्षा करें
भगवान् राम हमारे आदर्श हैं
क्योंकि
प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥
भगवान् राम का जीवन प्रारम्भ से ही हमें प्रेरणा देता है
अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं॥
बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई॥
गुरु गृह गए पढ़न रघुराई , अल्पकाल विद्या सब पाई।
उनका संपूर्ण जीवन कर्ममय रहा उनका पारायण करने से बुद्धि को प्राखर्य मिलेगा मन को तुष्टि मिलेगी
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रतिदिन मानस का पाठ करें
शिव जी कहते हैं
मति अनुरूप कथा मैं भाषी। जद्यपि प्रथम गुप्त करि राखी॥
तव मन प्रीति देखि अधिकाई। तब मैं रघुपति कथा सुनाई॥1॥
मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार यह कथा कह दी , जबकि पहले इसको छिपाकर रखा था। जब तुम्हारे मन में प्रेम का आधिक्य देखा तब मैंने श्री रघुनाथ जी की यह कथा तुमको सुनाई
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें