कविता कहानी में अगर संस्कार भरते जाएँगे,
यदि मंत्र सस्वर रीति से सब साथ मिलकर गाएँगे ,
प्रत्येक घर मंदिर सदृश पर्यावरण शिव तीर्थ सा
होंगे सुमंगल गीत गैरिक ध्वज गगन लहराएँगे।
प्रस्तुत है सूचक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
पंचमी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 09 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
680 वां सार -संक्षेप
1=दुष्ट व्यक्तियों का शत्रु
आइये पुनः प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जहां आचार्य जी हमारा आत्मबोध जाग्रत करने का नित्य प्रयास करते हैं हनुमान जी की यह अद्भुत कृपा है
हमारी आर्ष परम्परा में जिज्ञासाएं हैं कि हम कौन हैं हम कहां से आए हैं संसार क्या है संसार का स्रष्टा कौन है और उनका शमन भी है
यही हमारी शिक्षा है हमारा ज्ञान है हमारी सफलता का कारण भी यही है
जो इसे आत्मसात् करने में असमर्थ हैं सुखोपभोग को अपने जीवन का तत्त्वदर्शन मानते हैं वे हमेशा संकटों में घिरे रहते हैं ये हमारे मार्गदर्शक कभी नहीं हो सकते और इन्हें मार्गदर्शक मानना भी नहीं चाहिए
प्रायः राक्षसी जीवन का बोलबाला है फिर भी हम आशान्वित हैं और इसीलिए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए उद्यत रहते हैं
एकनिष्ठता अद्भुत है लेकिन आत्मनिष्ठा कम नहीं होनी चाहिए
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ – महाभारत, पर्व १, अध्याय १०७, श्लोक ३२
आत्मनिष्ठता के कारण ही हमें कर्तव्यबोध होता है
जैसे गिलहरी और रामसेतु प्रसंग
भगवान श्रीकृष्ण भी अपने को कर्तव्यरत कहते हैं
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन |
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि || 22||
इसी आत्मज्ञान आत्मनिष्ठा की आवश्यकता है मानस के पाठ का यह हेतु भी है भगवान राम की सेना अद्भुत है और इसी कारण रावण पराजित हुआ
सर्वशक्तिमान होते हुए भी भगवान ने जो लीलाएं कीं वे हमारा मार्गदर्शन करती हैं कि
संकटों में भी हम अपना मार्ग कैसे खोज सकते हैं
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।
श्रीरामचरित मानस से हम बहुत सारे अपने संकल्प सिद्ध कर सकते हैं संसार के सारे रोग इसी से जाएंगे
दैहिक दैविक भौतिक सारे क्लेश दूर करने में यह सक्षम है रामोपासक के लिए कुछ असंभव नहीं
रामभजन से बहुत लोगों ने गति पाई
राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।
भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान॥128॥
मो सम दीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर॥
तुलसीदास जी कहते हैं शिवजी ने मानस की रचना की
शिव शंकर हैं तो तांडव भी करते हैं
प्रश्नोपनिषद में
कात्यायन कबन्धी-हे भगवन् ! यह प्रजा किससे उत्पन्न होती है?'
महर्षि पिप्पलाद-'प्रजा-वृद्धि की इच्छा करने वाले प्रजापति ब्रह्मा ने 'रयि' और 'प्राण' नामक एक युगल से प्रजा उत्पन्न कराई।
प्राण गति प्रदान करने वाला चेतन तत्त्व है। रयि उसे धारण करके विविध रूप देने में समर्थ प्रकृति है।
मानसपाठ का आज आचार्य जी ने समापन किया
आचार्य जी ने आज और क्या बताया जानने के लिए सुनें