11.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है औजसिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 11 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  682 वां सार -संक्षेप

1= बलवान्



हम लोग भावमय दृष्टि से परस्पर एक दूसरे से संयुत रहते हुए  लोककल्याण के लिए कमर कसकर तैयार रहेंगे तो विषम परिस्थितियों में भी आनन्द की अनुभूति करते हुए अपनी जीवनयात्रा को मङ्गलमय ढंग से पूरी कर पाएंगे

इन अद्भुत भावों में प्रवेश करने के लिए आइये एक बार पुनः सदाचार वेला का आश्रय ले लें



हाल में ही श्रीरामचरित मानस का पारायण पूर्ण हो चुका है अब हम औपनिषद चिन्तन में प्रवेश कर चुके हैं

कल आचार्य जी ने उपनिषद् और शास्त्रों की ओर संकेत किया था ताकि हम प्रेरित होकर उस ओर भी अपना रुख करें इन्हें कठिन समझना हमारी भूल है और इनकी उपेक्षा भी गलत है ये शास्त्र मानसिक बौद्धिक आत्मिक उत्थान के अस्त्र हैं

तथाकथित शिक्षा से भ्रमित होने के कारण हमने इनकी उपेक्षा की है हमारी शिक्षा कभी बहुत अद्भुत रही है स्व राजीव दीक्षित ने विस्तार से इसके बारे में बताया है 



उपनिषद् क्या है?


वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत -हिन्दी कोश के अनुसार

उपनिषद् (स्त्री० ) [ उप + नि + सद् + क्विप् ] 1. ब्राह्मण ग्रन्थों के साथ संलग्न कुछ रहस्यवादी रचना जिसका मुख्य उद्देश्य वेद के गूढ अर्थ का निश्चय करना है - भामि० २।४०, मा० ११७ (निम्नांकित व्युत्पत्तियाँ उसके नाम की व्याख्या करने के लिए दी गई हैं -(क) उपनीय तमात्मानं ब्रह्मापास्तद्वयं यतः, निहन्त्यविद्यां तज्जं च तस्मादुपनिषद्भवेत् । या (ख) निहत्यानर्थमूलं स्वाविद्यां प्रत्यक्तथा परम्, नयत्यपास्तसंभेदमतो वोपनिषद्भवेत् । या (ग) प्रवृत्तिहेतुन्नि:शेषांस्तन्मूलोच्छेदकत्वतः, यतोवसादयेद्विद्यां तस्मादुपनिषद्भवेत् । का उल्लेख है


प्रश्नोपनिषद अर्थात् 

अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा के ब्राह्मण भाग से सम्बन्धित इस उपनिषद में जिज्ञासुओं द्वारा महर्षि पिप्पलाद से छह प्रश्न किये गये हैं।

पहला प्रश्न साल भर तपस्या करने के पश्चात् 

कात्यायन कबन्धी का है भगवन! यह प्रजा किससे उत्पन्न होती है?

महर्षि पिप्पलाद कहते हैं 'प्रजा-वृद्धि की इच्छा का विकार पैदा करने वाले प्रजापति ब्रह्मा ने  संकल्प रूप तप कर 'रयि' और 'प्राण' नामक एक युगल से प्रजा की उत्पत्ति कराई

आचार्य जी ने तप की परिभाषा बताई तपस्वी होने के लिए उचित भोजन भी आवश्यक है


गीता में


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


देवता , ब्राह्मण, गुरु तथा ज्ञानी जनों का पूजन, शौच,सरलता, ब्रह्मचर्य व अहिंसा  शरीर संबंधी तप कहलाता है



इसी तरह वाणी का तप है


जो भाषण उद्वेग उत्पन्न करने वाला नहीं है प्रिय, हित करने वाला और सत्य है

और वेदों का स्वाध्याय, अभ्यास वाणी का तप है


दम्भ में आकर कुछ भी कहीं भी बोल देना अनुचित है हम युगभारती के सदस्यों को भी इस ओर ध्यान रखना है 


मानस तप क्या है


मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।


भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।।


अर्थात्


मन की प्रसन्नता व्याकुलता नहीं , सौम्यभाव, मौन अर्थात् गम्भीर रहना ,आत्मसंयम और अन्त:करण की शुद्धि  है


तन मन बुद्धि महत्त्वपूर्ण है

हमारे रचनाकार ने भी तपस्या की वह हमें भी तपस्या करने की प्रेरणा देता है क्योंकि हम उसी के अंश हैं

हम लघु हैं वह गुरु है

यह परस्परावलंबन का भाव अद्भुत है तभी आदि शंकराचार्य कहते हैं


न पुण्यं न पापं न...... चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥


मनुष्य के लिए क्या करणीय है इस पर विचार करना आवश्यक है भारतवर्ष की धरती पर ही ऐसे भाव आते हैं इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें