बाल रवि की स्वर्ण किरणें निमिष मे भू पर पहुँचतीं
कालिमा का नाश करतीं ज्योति जग मग जगत करती
प्रस्तुत है अभ्यमित्रीण¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
नवमी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 13 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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684 वां सार -संक्षेप
1 वह योद्धा जो वीरत्व के साथ शत्रु का सामना करने में सक्षम रहता है
हमारे यहां की शिक्षा व्यवस्था यही बताती थी कि हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर सदाचारी जीवन जीने का प्रयास करें
हम अखंड भारत के उपासकों ने अपने संगठन युगभारती में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सुरक्षा नामक चार आयामों को लिया है और उद्देश्य है समाजोन्मुखी जीवन को जीना अर्थात् अपने व्यक्तिगत जीवन को सुरक्षित संरक्षित रखते हुए समाज की ओर अपना चिन्तन रखना
यदि हमें भान रहे कि जो हम कर्म कर रहे हैं वह उचित है या अनुचित तो समझ लेना चाहिए हमारा चिन्तन सार्थक है क्योंकि
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
परमेश्वर ने इस जड़-चेतन संसार को आनन्द प्रदान करने के लिए गुणमय और दोषमय दोनों तरह का रचा है
किन्तु गुणों का भंडार विचारक चिन्तक शोधकर्ता भक्त मनीषी अभ्यमित्रीण संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करता है
और यह तब होगा जब नित्य हम अपनी श्रुति और स्मृति में सामंजस्य बैठाएंगे
जो हमने ज्ञान सुना है उसे स्मृतियों में संरक्षित करते हुए समस्याओं को सुलझाते रहना और यह मनुष्य के लिए ही संभव है और मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए
श्रुति अर्थात् वेद या ज्ञान और,अर्थात् शास्त्र या नियम
जो ज्ञान हमें प्राप्त हुआ है उसके परिपालन के नियम शास्त्र हैं
परमात्मा की वाणी को ऋषियों ने सुना फिर उनके शिष्यों ने सुना यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही
हमारा अध्यात्म कहता है यह सारी ईश्वरीय व्यवस्था तप है
परमात्मा ने तप प्रारम्भ किया और वह तप विविध प्रकार से हमारे पास आया
दीनदयाल जी ने किसे मौलिक नहीं बताया था
संगठन का मूल आधार क्या है
गुरु रामभद्राचार्य जी ने क्या कहा
सूक्ष्म अवस्था से क्या तात्पर्य है आदि जानने के लिए सुनें