सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64।।
प्रस्तुत है अभ्यमित्र्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
दशमी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 14 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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685 वां सार -संक्षेप
1 वह योद्धा जो वीरतापूर्वक दुश्मन का सामना करता है
हम मनुष्य रूप में जन्मे हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए प्रेम सद्भाव आत्मीयता मनुष्य का चरित्र प्रकट करते हैं पौरुष पराक्रम विश्वास मनुष्यत्व का विस्तार है गीता मानस आदि ग्रंथ यही सिखाते हैं कि मनुष्य रूप में जन्म लेने के कारण मनुष्यत्व आवश्यक है
जिन्हें भी मनुष्यत्व की अनुभूति होती है वे सत्कर्म करते हुए संसार की समस्याओं से आसानी से छुटकारा पा लेते हैं
नई पीढ़ी को संस्कारित प्रशिक्षित करने के लिए घर का वातावरण सही करने की आवश्यकता है कुछ क्षण ऐसे निकालें कि परिवार के सारे लोग एक स्थान पर एकत्र हो सकें आनन्द के क्षण व्यतीत करें विवादरहित चर्चा करें
हमें यदि आत्मबोध रहता है तो हम अपने को छोटा महसूस नहीं करेंगे और तत्त्वबोध रहता है तो दम्भ नहीं करेंगे
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
यह जीवन मन्त्र है
हम इन सिद्धान्तों का पालन करते हुए समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी जीवन जीने के लिए संकल्पित हैं
देशसेवा किस प्रकार हम कर सकते हैं आचार्य जी ने विस्तार से इसके लिए परामर्श दिया
कर्मों को संस्कारवान बनाना चाहिए
मनुष्य के संस्कार के लिए हमारे यहां बहुत से मार्ग हैं
निर्गुंणोपासना भी है सगुणोपास्ना के साथ, शुद्धाद्वैत द्वैत केवलाद्वैत द्वैताद्वैत हैं
धर्म का अर्थ कर्तव्य है आचार्य जी ने आत्मविस्तार को समझाया
एक तुम, यह विस्तृत भू-खंड प्रकृति वैभव से भरा अमंद,
कर्म का भोग, भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन--आनंद।
अकेले तुम कैसे असहाय यजन कर सकते? तुच्छ विचार।
तपस्वी! आकर्षण से हीन कर सके नहीं आत्म-विस्तार।
दब रहे हो अपने ही बोझ खोजते भी न कहीं अवलंब,
तुम्हारा सहचर बन कर क्या न उऋण होऊँ में बिना विलंब?
समर्पण लो--सेवा का सार, सजल-संसृति का यह पतवार,
आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद-तल में विगत-विकार,
दया, माया, ममता लो आज, मधुरिमा लो, अगाध विश्वास,
हमारा हृदय-रत्न-निधि स्वच्छ तुम्हारे लिए खुला है पास।
बनो संसृति के मूल रहस्य, तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,
विश्व-भर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुंदर खेल।"
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षावल्ली को हम ठीक तरह से समझें इसी प्रकार प्रश्नोपनिषद भी महत्त्वपूर्ण है
तप अत्यन्त महत्त्व का है
घर का अनुशासन विद्यालय के अनुशासन से कम नहीं होना चाहिए
हम लोग आचार्य जी से प्रश्न करें
ग्रामविकास का कार्य किसे मिला आदि जानने के लिए सुनें