अंधेरा है तनिक दीपक जलाओ
सुबह जब तक न हो यह जगमगाओ ,
उठो अपने दियों में स्नेह भर लो
कि, सूखी बातियां सस्नेह कर लो,
अंधेरे में दिया ही साथ देगा
शिथिल साथी उठेगा हाथ देगा,
अभी सबको सहारे की जरूरत
सभी की फिर खिलेगी सुबह सूरत,
सुबह होगी तनिक सी देर बाकी
घड़ी अब आ गई अंतिम अमा की।।
✍️ओम शंकर
प्रस्तुत है सूरत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
द्वादशी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 16 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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687 वां सार -संक्षेप
1 : दयालु
मनुष्य लगातार योजनाएं बनाता है लेकिन जो मनुष्य अध्यात्म आधारित भावों में डूबकर योजनाओं की सफलता को परमात्मा का प्रसाद मान लेते हैं वे असफलता में निराश नहीं होते और सफलता में दम्भ नहीं करते
दम्भ आसुरी संपदा है
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।।16.4।।
हे अर्जुन ! दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर वाणी और अज्ञान आसुरी सम्पदएं हैं
हमें परमात्मा के आश्रित रहकर कर्तव्यबोध होना चाहिए
इस कथात्मक संसार में सहज परिस्थितियों के साथ साथ विषम परिस्थितियां भी हैं नायकत्व है तो खलनायकत्व का भी अस्तित्व है परमात्मा ने हमें रचना करने के लिए भेजा है मानस में यह सब स्पष्ट है मां सती के भ्रम को शिव जी ने दूर किया कि ये प्रभु ही मनुष्य रूप में लीला कर रहे हैं
हर व्यक्ति के साथ कथा लगी है परमात्मा द्वारा ज्योंही सृष्टि रचने का क्रम प्रारम्भ होता है कथा वहीं से प्रारम्भ हो जाती है पूरा जीवनचक्र एक कथा है
शिव जी कहते हैं
राम कृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं।
सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं॥ 112॥
तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई॥
जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना। श्रवन रंध्र अहिभवन समाना॥
जिन्होंने भी अपने कानों से भगवान की कथा नहीं सुनी, उनके कानों के छेद साँप के बिल जैसे ही हैं।
नयनन्हि संत दरस नहिं देखा। लोचन मोरपंख कर लेखा॥
ते सिर कटु तुंबरि समतूला। जे न नमत हरि गुर पद मूला॥
जिन्होंने अपनी आंखों से संतों के दर्शन नहीं करे हैं , उनकी आंखें मोरपंखी वाली नकली आँखों की तरह हैं। वे सिर कड़वी तूँबी जैसे हैं, जो हरि और गुरु के पैरों पर नहीं झुकते।
कुछ दंभी पैर नहीं छूते वे गलत हैं हमें सहजता अपनानी चाहिए
जिन्होंने भगवान की भक्ति को अपने हृदय में जगह नहीं दी वे प्राणी जीते हुए ही मृतक हैं
भगवान् राम की पूरी जीवनयात्रा संकटों में घिरी है
विश्वामित्र राम को संघर्ष के लिए तैयार करते हैं वशिष्ठ राम को शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराते हैं
दुष्ट को दंड देने की अनुभूति धर्म है रचनाकार प्रभु के प्रतिनिधि होने के नाते रचना में आई बाधा को हम हटाते हैं
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है
(साकेत )
आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि हम हंसी के पात्र क्यों बने इसलिए हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म नहीं त्यागना चाहिए शक्ति भक्ति साथ साथ चलनी चाहिए
हम सबके सामने चुनौती है अपनी नौका कुशलता से चलाएं हम अमरत्व के उपासक हैं शौर्य के लिए हम सदैव तैयार हैं उम्र से मतलब नहीं संगठन भी अनिवार्य है
रामकथा कृष्णकथा दोनों ही अद्भुत हैं
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।
आचार्य जी ने नाना जी का नाम क्यों लिया पंकज भैया की चर्चा क्यों की
आदि जानने के लिए सुनें आज का यह संप्रेषण