हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥
साधना की चरम अवस्था में जीव का अहंभाव नष्ट हो जाता है। यही आनन्द प्राप्ति की अवस्था है अद्वैत को अनुभव करने पर आत्मा परमात्मा का अंश लगता है। अंश अंशी में लीन होकर अपना अस्तित्व ही मिटा देता है।
यदि कोई व्यक्ति आत्मा के पृथक् अस्तित्व को खोजना चाहे तो उसके लिए यह दुरूह कार्य होगा।
प्रस्तुत है अभिसंध-रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष
त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 17 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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688 वां सार -संक्षेप
1 : अभिसन्धः = लांछन लगाने वाला
हम भारतीय दैवीय संस्कृति के उपासक हैं और हमें विश्वास रहता है कि हम सदैव दैवीय शक्तियों द्वारा रक्षित हैं और इसीलिए विजय के लिए संकल्पित रहते हैं
हमारी ऋषि परम्परा यही सिखाती रही है कि हम आसुरी संपदा से दूर रहें सदाचारमय विचार ग्रहण करते रहें वह हमें सचेत करती है कि भाषा की मर्यादा हम कभी न लांघें
इसी ऋषि परम्परा के पक्षधर और समाज, राष्ट्र को उत्कर्ष की दिशा देने के लिए लालायित आचार्य जी द्वारा हम इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर अपने जीवन को सही दिशा और दृष्टि देने का प्रयास कर रहे हैं ताकि संकटों के आने पर हम बिल्कुल घबराएं नहीं समस्याओं का आसानी से सामना कर सकें
आसुरी संस्कृति के प्रति लगाव होने पर आसुरी विचार आने लगते हैं जो आसुरी व्यवहार में व्यक्त होने लगते हैं इसीलिए हमें अपना विवेक जाग्रत करने की विचारों को परिमार्जित करने की आवश्यकता है सद्भाव और सद्विचारों से व्यवहार भी उत्कृष्ट हो जाता है
हम प्रकृति को संस्कृति की ओर ले जाते हैं विकृति की ओर नहीं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट में अपनी भूमिका स्पष्ट की
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि समान नागरिक संहिता के जनमत में युगभारती बढ़ चढ़कर हिस्सा ले
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आदिपुरुष, The Kerala Story की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन