18.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रथा वर्षों पुरानी है कि हम परिवार जीते हैं, 

सभी दुख-दर्द विस्मृत कर मधुर मधु प्यार पीते हैं, 

नहीं अपने लिए जीना गवारा हो सका पल भर, 

कभी मन में नहीं आया कि हम 'इस बार रीते हैं'  ।



प्रस्तुत है व्यपदेष्टृ -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 18 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  689 वां सार -संक्षेप

1 :  व्यपदेष्टृ =धोखेबाज

गुरु कैसा होना चाहिए 

गुरु की परिभाषा है कि वह 

शान्तो दान्तः कुलीनश्च विनीतः शुद्धवेषवान् ।

शुद्धाचारः सुप्रतिष्ठः शुचिर्दक्षः सुबुद्धिमान् ॥ २-५१॥


आश्रमी ध्याननिष्ठश्च मन्त्रतन्त्रविशारदः ।

निग्रहानुग्रहे शक्तो वशी मन्त्रार्थजापकः ॥ २-५२॥

होना चाहिए 

उसी के अनुरूप गुरु हैं अपने आचार्य श्री ओम शंकर जी


 उन्हीं आचार्य जी की तात्विक बातों से भरपूर सदाचार वेला , जो निः संदेह परमात्मा की एक व्यवस्था है,हम आस्थावादियों का एक आश्रय है,में, उत्साह में डूबने के लिए  कल्याण मार्ग पर चलने के लिए  आत्मस्थ होने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने का हौसला पाने हेतु आइये प्रवेश करते हैं इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि इन वेलाओं की हमें प्रतिदिन प्रतीक्षा रहती है 


तुलसीदास जी कहते हैं


जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।

बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥


संसार में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, उन सभी को राममय जानकर सदैव मैं उन सबके चरणकमलों की ( दोनों हाथ जोड़कर )वन्दना करता हूँ


यह साम्य अवस्था है लेकिन है बहुत मुश्किल


छांग्योपनिषद् में नारद जी सनत कुमार से कहते हैं , "भगवन! मैंने दार्शनिकता के छह भागों, चार वेद, उपवेद, गणित और अन्य सभी विज्ञानों का अध्ययन किया है. परन्तु मैं आत्मिक शांति प्राप्त करने में असमर्थ हूँ


यह शान्ति की अनुभूति बहुत कठिन है अर्थात् 

कुछ समय आत्मस्थ होने का भाव

तुलसी जी  जिनकी स्वयं की कथा अद्भुत है कहते हैं


करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥

सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥3॥



मैं प्रभु राम के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी के चरित्र की थाह ही नहीं है। इसके लिए मुझे कोई उपाय नहीं सूझता। मेरा मन और मेरी बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा है

आत्मस्थता हमारे लिए भी कठिन है लेकिन 

इन्हीं वेलाओं के क्षण हमें आत्मस्थ होने के लिए प्राप्त हो जाते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम 

महापुरुषों की जीवनियों की ओर रुख करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने और क्या कहा जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण