कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
प्रस्तुत है अभिजात ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष
प्रतिपदा ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 19 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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690 वां सार -संक्षेप
1 : विद्वान्
हम संगठन मन्त्र के जापक यदि आपस में संपर्क करके प्रश्नोत्तर करते हैं तो यह सदाचार वेला और अधिक फलवती हो जाएगी
प्रश्न उत्तर और सहयोग से उसकी समीक्षा द्वारा हमारा ज्ञान समृद्ध होता है और यह यज्ञीय कर्म व्यवहार जगत में अत्यन्त उपादेय है
तत्त्वदर्शी आचार्य जी से भी हम यदि प्रश्न करते हैं तो हमारे लिए यह अत्यन्त लाभकारी है
जैसा गीता में कहा भी गया है
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।
उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों के समीप जाकर समझें । उनको साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और परिप्रश्न करने से वे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश देंगे।
संगठन को जीवन्त बनाए रखने के लिए भी सतत संपर्क आवश्यक है
व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने की यात्रा व्यक्ति के संसर्ग संपर्क से ही आती है मशीन से यह संभव नहीं
गीता में
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।
अपने अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि को प्राप्त कर ही लेता है। स्वकर्म में रत व्यक्ति किस प्रकार सिद्धि प्राप्त करता है, उसे तुम सुनो
जिस परमात्मा से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति होती है और जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है, उस परमात्मा का अपने कर्म के द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।
और हमारा उद्देश्य भी सिद्धि प्राप्त करने का है
पालक परमात्मा आनन्दित होने के लिए मनुष्य से कहता है कि मेरे लिए यज्ञ तप और दान करो परमात्मा ने कठिन काम हमें सौंपा है लेकिन हम मनुष्य है इसलिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति भी करनी चाहिए
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।
हम आत्मनिष्ठ होंगे तो सर्वज्ञ हो जाएंगे स्वाध्याय से दूरी बनाना हमें भटका देता है
हम मां भारती के भक्त त्याग के लिए उत्पन्न हुए हैं सभ्यता का मूल स्रोत भारतवर्ष ही है और यहां के अनुसंधान चरम सीमा तक पहुंच चुके हैं हमें इस पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए
अस्ताचल वाले देशों से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां के निवासी भोग के लिए उत्पन्न हुए हैं
आगामी 2024 के चुनाव गम्भीरता से लें यह सामजिक कर्तव्य है इसके लिए सक्रिय हों लक्ष्य प्राप्त करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पवन भैया मनीष भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें आज का संप्रेषण