प्रस्तुत है तापस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष
तृतीया ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 21 -06- 2023
(योग -दिवस )
का सदाचार संप्रेषण
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692वां सार -संक्षेप
1 : भक्त
पुन: आज की सदाचार वेला में सोत्साह हम शिष्य उपस्थित हैं। अज्ञानांधकार को दूर करने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी नित्य हमें धर्मपथ पर चलने के लिए, मनुष्यत्व की अनुभूति कराने के लिए प्रेरित करते हैं l यह कलियुग है अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया रहता है लेकिन परमात्मा की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने का अवसर भी मिलता है यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ उठाकर सात्विक चिन्तन में रत हो जाएँ और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा लें
आज योग दिवस है। योग मार्ग पर चर्चा हेतु दूसरे अध्याय में आइये प्रवेश करते हैं
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥
हे धनञ्जय ! सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो।
क्योंकि प्रयास करना हमारे हाथ में है और परिणाम निश्चित करना हमारे नियंत्रण से बाहर है
इसे ही समभाव योग कहते हैं
छठे अध्याय में
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः । स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥
जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेते हुए करणीय कर्म करता है, वही संन्यासी तथा योगी है
केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है
केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है
योग चित्तवृत्ति का निरोध है
चित्त मन बुद्धि अहंकार से बना है आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि कभी अपने विद्यालय की प्रबन्धकारिणी समिति के उपाध्यक्ष रहे श्री शर्मा जी कितने एकाग्रचित्त हो गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि आचार्य श्री ओमशंकर जी वहां आ चुके हैं
हरिनाम का जप कैसे योग है
हम लोगों के आनन्द की चिन्ता करने वाले
आचार्य जी ने चित्त की पांच अवस्थाएं पांच वृत्तियां क्या बताईं आदि जानने के लिए सुनें आज का यह संप्रेषण