हे, जगजीवन के कर्णधार
ज्योतित जीवन शाश्वत विचार
संकल्प सिद्धि साधक उदार
जागो शुभ पावन कुलाचार।
प्रस्तुत है सामयिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष
पञ्चमी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 23 -06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
694 वां सार -संक्षेप
1 : = वक्त का पाबंद
मन बुद्धि भाव विचार संकल्प शक्ति भक्ति तप साधना स्वाध्याय करुणा संवेदनशीलता को एकीकृत कर अपने लक्ष्य पर भेदी दृष्टि रखते हुए समय समय पर हम लोगों की हिम्मत बंधाने वाले हम लोगों में सैनिक भाव जाग्रत करने वाले आचार्य जी हम लोगों के समक्ष इस तत्त्वों से भरपूर सदाचार वेला में आज पुनः उपस्थित हैं
आइये प्रवेश करें इस वेला में अपना आत्मबोध अपनी आत्मशक्ति जाग्रत करने के लिए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए स्वाश्रयी समाज तैयार करने के लिए राष्ट्रनिष्ठा से परिपूर्ण व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए संगठित रहने का भाव मन में रखते हुए छिपे हुए आस्तीन के सांपों से सचेत रहते हुए
साधना -सन्दीप आचार्य जी ने योग की विस्तृत व्याख्या की
उन्होंने बताया कि प्राणों का परिपोषण भी आवश्यक है उसी से हिम्मत आती है
श्रीरामचरित मानस श्रीमद्भगवद्गीता को जीवन में उतारने का हम लोग प्रयास करें
अपना आत्मबोध जाग्रत करने के लिए आइये आचार्य जी की इस अद्भुत कविता का आश्रय लें
मैं अमा का दीप हूँ जलता रहूँगा
चाँदनी मुझको न छेड़े आज, कह दो |
जानता हूं अब अन्धेरे बढ़ रहे हैं
क्षितिज पर बादल घनेरे चढ़ रहे हैं
आँधियाँ कालिख धरा की ढो रही है
व्याधियाँ हर खेत में दुःख बो रही है
फूँक दो अरमान की अरथी हमारी
मैं व्यथा का गीत हूँ चलता रहूँगा।
मैं अमा का दीप..... ।।१।।
मानता हूँ डगर यह दुर्गम बहुत है
प्राण का पाथेय चुकता जा रहा है
प्यास अधरों की जलाशय खोजती है
भाव का अभियान रुकता जा रहा है
काल से कह दो कि अपनी आस छोड़े
हिमशिखर का मीत हूँ गलता रहूँगा
मैं अमा का दीप......।।२।।
साधना की सीप मोती क्या करेगी
कामना की क्यारियाँ मुरझा रही हैं
पवन की साँसें अटक भटकें भले ही
याचना मुँह खोलते शरमा रही है
नलिन अब दिनमान की क्यों राह देखे
साधना -सन्दीप हूँ जलता रहूंगा
मैं अमा का दीप.... || ३ ||
आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि एक व्यक्ति बाद में बहुत व्यथित हुए कि उन्होंने business के लिए बच्चों को बहुत खराब खराब चीजें खिलाईं
आचार्य जी ने जगदीशपुर गांव जिला भोजपुर बिहार के वीर कुंवर सिंह,जिनका जन्म एक राजपूत परिवार मे हुआ था (13 नवंबर 1777 - 26 अप्रैल 1858) (वे 1857 प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है), की चर्चा की
अगर ऐसे उदाहरण हम नहीं जानते हैं तो उसका कारण यही है कि इन उदाहरणों को छिपाया गया
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