थाल सजाकर किसे पूजने
चले प्रात ही मतवाले?
कहाँ चले तुम राम नाम का
पीताम्बर तन पर डाले?
कहाँ चले ले चन्दन अक्षत
बगल दबाए मृगछाला?
कहाँ चली यह सजी आरती?
कहाँ चली जूही माला?
प्रस्तुत है आर्तबन्धु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष
सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 25-06- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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696 वां सार -संक्षेप
1 :दुःखियों का मित्र
आज की सदाचार वेला में हम शिष्य अत्यन्त उत्साह के साथ उपस्थित हैं। यह वेला अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कराने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी की नित्य हमें धर्मपथ पर चलने की , मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की भौतिकवादी से अध्यात्मवादी बनने की अभिप्रेरणा है l यह कलियुग है अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया ही रहता है लेकिन इन्द्रियातीत परमात्मा की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने के पर्याप्त सुअवसर भी मिलते हैं समय के लिहाज से अत्यन्त उपयोगी यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ उठाकर शिक्षार्थित्व की अनुभूति करते हुए
(गगन के उस पार क्या
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार, जग
जिस पर थमा आधार क्या है?
यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होगा।
हृदय उसका धाम होगा
नाम उसका राम होगा।)
सात्विक चिन्तन में रत हो जाएँ और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा लें
परमात्मा समस्त इन्द्रियों का मूल स्रोत है परमात्मा अद्भुत है परमात्मा समझ में नहीं आता
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।
वह समस्त इन्द्रियों के कार्यों के द्वारा प्रकाशित होने वाला, किन्तु समस्त इन्द्रियों से रहित है
आसक्ति रहित गुण रहित होने के बाद भी सबका धारण पोषण करने वाला और गुणों का भोक्ता है
भौतिकवादी बालक के समान है लेकिन सभी के भीतर गुरु बैठा है इसलिए अपने पास बैठना अद्भुत है
आत्मानुभूति अवर्णनीय है
अप्पदीपो भव
आत्म की अनुभूति से अद्भुत अवस्था आती है परमात्मा की तरह मनुष्य भी एक तरह से सृष्टि की रचना करता है
हम सभी को परमात्मा से वरदान मिला है बात सिर्फ अनुभव करने की है
तुलसीदास जैसा व्यक्ति संसार से उत्पन्न होकर अपने अंदर संसार को समा लेता है
तुलसी मानस की अद्भुत रचना करते हैं
वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंद सामपि,
मंगलानां च कर्त्तारौ वंदे वाणीविनायकौ
संसार बहुत रहस्यात्मक है परमात्मा जादू करता रहता है
इस रहस्यात्मक संसार को जितना समझने की चेष्टा की जाए उतना कम है
प्रायः हम सभी सांसारिकता में लिप्त होकर घर का पता भूल चुके हैं इसलिए हमारे लिए आत्मानुभूति आवश्यक है
पहुँच गयी गाड़ी मुकाम पर अभी उतरना है
घर का पता भूल आया हूँ भटक विचरना है
लंबी दूरी राह अजानी
लगती भर जानी-पहचानी
अपने जैसों का मेला है
आपाधापी का रेला है
कहाँ गयी वह कौन आ गया
धूम छटी फिर मौन छा गया
कोइ खोजता घूम रहा है
कोई बैठा झूम रहा है
झटका लगा हार कर सोचा यहीं पसरना है ।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज भैया मुकेश का नाम क्यों लिया मोदी जी की अमेरिकी यात्रा के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें