26.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26-06- 2023

 प्रस्तुत है  आर्तसाधु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 26-06- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  697  वां सार -संक्षेप

1 :दुःखियों का मित्र



आज की सदाचार वेला में  हम   रहस्यपूर्ण दुर्लभ तपोसिद्ध अनन्त ज्ञान के प्रबोध के लिए उत्सुक शिक्षार्थी अत्यन्त उत्साह के साथ उपस्थित हैं। यह वेला अपनी तपस्या का प्रतिफल न चाहने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी  की नित्य हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की  अनुप्रेरणा है l यह कलियुग है तो अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया ही  है लेकिन  परमपिता की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने के, अनित्य में नित्य का भान करने के, पर्याप्त सुअवसर भी प्राप्त हैं     यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ  उठाएं



नाम रूपात्मक संसार क्या है? सृष्टि कैसे बनी? इसका निर्माता कौन है? मृत्यु क्या है? ये सारे प्रश्न मनुष्य के द्वारा उत्पन्न हैं और मनुष्य के द्वारा ही सुलझाए गये हैं

मनुष्य  ही नाम रूप तत्त्व शक्ति ब्रह्म है इसलिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए




अमित शिवशक्ति संयम साधना संसार का सुख है, 

धरावत् भाव जिस दर हो वही सत्प्यार का मुख है। 

कि जो संसार में रहकर समझते प्यार-परिभाषा, 

कभी उनको किसी भी भाँति का कोई नहीं दुख है। ।


आचार्य जी ने बताया कि अविद्या पञ्चपर्वा क्यों कही जाती है  राग सुख के साधन की तृष्णा है  लेकिन विद्या एक रूप है आत्मबोध हनुमान जी की कृपा है



आचार्य जी ने गीता-संग्रह, द्वितीय गुच्छक (Gita-Sangrah, Dvitiya Guchchhak) जिसमें पंद्रह विभिन्न गीता ग्रंथों का अनुवाद सहित संकलन किया गया है, की चर्चा करते हुए  श्रीमद्भगवद्गीता को सार्थक करने वाली गीता प्रेस जो 1923 से पूरे विश्व में अपने साहित्य के माध्यम से नैतिकता और आध्यात्मिकता का प्रचार  प्रसार कर रही है,का एक अद्भुत प्रसंग  विद्यालय में अध्ययन कर चुके भैया राजकुमार बथवाल जी से संयुत करते हुए बताया

ऐसी प्रेस पर भी कुछ दंभी कीचड़ उछालते हैं


ऐसी बहुत सी संस्थाएं थीं और हैं जो संसार को पार कराने की नौकाएं सिद्ध हुईं


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा यह भाव जाग्रत रहता है साधना को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए  अपने शरीर को सही रखें अनन्त स्वरूप वाले परमात्मा की उपासना करें जल्दी जागें खानपान सही रखें अविद्या और विद्या दोनों को जानें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अस्मिता को कैसे परिभाषित किया अपनी रिसर्च के दौरान आचार्य जी कहां गये थे जानने के लिए सुनें