बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार।
मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार॥
समाजसुधारक कुरीतियों के निवारक गुरु रामानन्द के प्रति अपार भाव रखने वाले कबीरदास जी कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर हर क्षण सैकड़ों बार न्यौछावर होता हूँ जिन्होनें मुझको बिना देर लगाये मनुष्य से देवता कर दिया
प्रस्तुत है अनन्यसदृश ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष
पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा ),विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 03-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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704 वां सार -संक्षेप
1 :अनुपम
आत्मज्ञान की इस नित्य पाठशाला में ज्ञान के प्रकाश से समृद्ध आचार्य जी
(सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावण हार॥
ज्ञान से संपन्न सद्गुरु की महिमा अनन्त है। उन्होंने मेरा जो उपकार किया है वह भी सीमारहित है। उन्होंने मेरे अपार शक्ति संपन्न ज्ञान-चक्षु को खोल दिया जिससे मैं परम तत्त्व का साक्षात्कार कर सका। ईश्वरीय आलोक को दृश्य बनाने का श्रेय ऐसे महान गुरु को ही है।)
के सदाचारमय विचार अपार शक्ति से सम्पन्न किन्तु भ्रमित हम मनुष्यों को मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र,
जो संबन्धों की पूजा करता है भावों की पूजा करता है,
के प्रति निष्ठा को जाग्रत कराते हैं
भगवान् की विशेष कृपा हमारा अज्ञान भय भ्रम दूर करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराती है
यह पाठशाला ऐसा ही एक अवसर है
आइये इस पर अटूट विश्वास करके इससे लाभ प्राप्त करें ईश्वरीय आलोक का दर्शन करें
आचार्य जी ने बताया कि गुरु रामानन्द जिनका रामानन्दी संप्रदाय चल गया (गुरु रामभद्राचार्य जी भी इसी संप्रदाय के हैं )ने कबीर को भगाया नहीं उनके आसपास के लोगों ने उन्हें फटकने नहीं दिया होगा और फिर जब कृपा हुई
तो कबीर रामानन्द का हो गया
सतगुर हम सूँ रीझि करि, कहा एक परसंग।
बरसा बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥
प्रेमाश्रु सारा कलुष धो देते हैं
तुलसीदास ने गुरु को शंकर रूप कहा अर्थात् कल्याण करने वाला
गुरु शिष्य परम्परा अद्भुत है
भगवान् दत्तात्रेय का आगमवर्ग में अत्यन्त महत्त्व है आगम तन्त्र शास्त्र का एक भाग है
वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा, सब कार्यों के साधन, पुरश्चरण, षट्कर्म- साधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो, उसे आगम कहते हैं
तन्त्र शास्त्र तीन भागों में विभक्त है— आगम, यामल और मुख्य तंत्र
तन्त्र का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। अर्थात् तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है।
आचार्य जी ने महानिर्वाणतन्त्र का उल्लेख करते हुए बताया
कि कलियुग में अपवित्रता का बोलबाला है आगममार्ग के अतिरिक्त कोई गति नहीं है
आज गुरु पूर्णिमा के पवित्र दिन में एक ही चिन्तन करें
मैं शरीर मन विचार और मात्र तत्व नहीं हूं
मैं तत्त्व शक्ति विश्वास का सामञ्जस्यपूर्ण स्वरूप हूं
(एकात्म मानवदर्शन ) मैं संसार और संसारेतर दोनों हूं
हम सभी का गुरू अपने हृदय में द्युतिमान है,
वायु पर आसीन होकर गात में गतिमान है,
उसी का हो ध्यान धारण उसी की आराधना,
यही है युगधर्म प्यारे यही अपनी साधना।
कसाई क्या पूछता है यह किस प्रसंग में आया शिष्य या भक्त की क्या परिभाषा है आदि जानने के लिए सुनें