प्रस्तुत है अनातुर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष
द्वितीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 05-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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706 वां सार -संक्षेप
1 :स्वस्थ
आत्मज्ञान के इस नित्य मंच पर आचार्य जी के सदाचारमय विचार हम भ्रमित भयभीत मनुष्यों को मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनाने का प्रयास करते हैं
आइये इस पर श्रद्धा और विश्वास करके इससे लाभ प्राप्त करें
गीत मैं लिखता नहीं हूँ से
। आओ काल बुलाता है
भावों का ज्वालामुखी मचलता जब उर में
हर शब्द दहकता अंगारा बन जाता है
सुधियों में उतरा करता है इतिहास अमर
संकल्प अकल्पित मानस में ठन जाता है ।
उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता
गूँजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास
देवता दीन-दुर्बल हो पन्थ भटकते हैं
तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास
यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का
चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है
देवासुर संग्राम लगातार चल रहा है हाल में फ्रांस में एक अघटित घटना हुई दुष्ट लोगों ने अपने स्वभाव के अनुसार दुष्टता की चरम सीमा पार कर ली
हमारा स्वभाव इन दुष्ट लोगों से भिन्न है हमें दैवीय शक्तियों के संवर्धन का प्रयास लगातार करना चाहिए जैसा फ्रांस की जनता ने स्थान स्थान पर इन दुष्टों का प्रतिकार कर शासन का साथ देकर किया
स्थान स्थान पर प्रतिकार होने पर शान्ति स्थापित होती है
हमारी प्रकृति शान्ति स्थापना की रहती है हम लोगों की मदद करते हैं और यही भाव हम युगभारती सदस्यों में सदा पल्लवित रहना चाहिए
हम समाज का चिन्तन और चिन्ता अवश्य करें इसे लिपिबद्ध भी करें यह लेखन हमें ही आनन्दित करेगा
हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें
व्यक्तिगत हानियां लाभ लोभ की आशा छोड़ उठें
सपनों के पंख नहीं होते,
होते न सत्य के पांव कभी
वीरों के लेंहड़ न होते हैं,
संतों के होते गांव कभी?
क्या कहीं प्रतिष्ठा की बाजारें लगती हैं,
पौरुष का कहीं न होते देखा मोल -तोल l
पुरुषार्थ पराक्रम मौन मनन में रत रहता,
पर संकट में अड़ जाता अपना वक्ष खोल ll
जो नियमनीतियों की परिभाषा गढ़ते हैं,
वो शायद ही उनका परिपालन कर पाते l
पर कभी न जिनने इनकी परिभाषा बांची,
वो ही झंझाएं झेल शिखर सर कर जाते ll
यह भारत है दैवी आभा से ओतप्रोत,
इसका सपूत हरदम विश्वासी होता है ll
जो नहीं यहां की माटी में जन्मा जूझा,
जीवन का भार कहार सदृश ही ढोता है ll
आओ भारत की माटी का सम्मान करें,
इस पावन माटी से ही माथा सजा रहे ।
अध्यात्म शौर्य तप वैभव त्याग पराक्रम से,
फहराती नभ में भारत मां की ध्वजा रहे ll
हम शस्त्र शास्त्र संयोग पराक्रम पौरुष का वरण करें
हमारे अन्दर ब्रह्म ज्ञान के लिए समर्पण हो
राष्ट्र -हित में प्राण अर्पित करने की ललक हो
स्मृतियां आनन्द देती हैं ऐसी स्मृतियां जब हमारे अन्दर पल्लवित होने लगती हैं तो श्रुति के पश्चात् उन स्मृतियों का संपादन होने लगता है वही हमारी मार्गदर्शक हो जाती हैं अपने मार्गदर्शक हम स्वयं हैं
हमारे अन्दर का तेजस संयम साधना के साथ प्रतिफलित होने लगता है हमें स्वयं ही दिशा दृष्टि मिलने लगती है
आत्मानुभूति की भाषा अद्भुत है
इसका प्रयास और अभ्यास करें
जल्दी जागें खानपान की सात्विकता आसन ध्यान प्राणायाम पर ध्यान दें
सदाचार से अपने परिवर्तन की समीक्षा करें
विश्व में शान्ति के लिए कमर कसें
संपूर्ण विश्व आर्य बने इसका प्रयास करें
इसके अतिरिक्त
तबले वाले श्री पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें