जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
प्रस्तुत है अनात्मनीन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष
तृतीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 06-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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707 वां सार -संक्षेप
1 :निःस्वार्थ
आनन्द की अनुभूति ही इस वेला का सार तत्त्व है अन्यथा शेष समय तो सांसारिक प्रपंचों में संघर्ष करते हुए बीत जाता है इसलिये समय का सदुपयोग करते हुए सदाचारमय विचार
उदाहरणार्थ
"प्रायः स्मृतियां आनन्द देती हैं ऐसी स्मृतियां जब हमारे भीतर पल्लवित होने लगती हैं तो श्रुति के उपरान्त ऐसी स्मृतियों का संपादन होने लगता है और वे ही हमारी मार्गदर्शक हो जाती हैं अपने मार्गदर्शक हम स्वयं हो जाते हैं"
,
" मन से दिया गया आशीर्वाद अत्यन्त प्रभावकारी होता है "
आदि
ग्रहण करने के लिए आइये इस दूरस्थ फिर भी अत्यन्त उपयोगी महत्त्वपूर्ण वेला में प्रवेश कर जाएं
किसी भी कारण से आनन्द की अनुभूति परमात्मा की ही कृपा है
इस अनुभूति को विस्तार देने के लिए हम अदृश्य अस्पष्ट अवर्णनीय अद्भुत भविष्य की चिन्तना करने लगते हैं इस कल्पना में आनंद के उपलब्ध क्षण उतनी देर भी हमें आनन्दित नहीं कर पाते और फिर हम अपने अनुकूल समूह को खोजने लगते हैं
लेकिन अकेले में आनन्द की अनुभूति परमात्मा की महती कृपा है
हम भावुक और भावक लोग , जो महापुरुषों के अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिए हुए हैं,किसी दैवीय विधान से एक दूसरे से संयुत हैं इस दैवीय विधान का आनन्द हमें तब मिलेगा जब हम इस विधान की अनुभूति करेंगे
श्री रामचरित मानस का अध्ययन भारत के भविष्य का संस्कार है
यह केवल बालकांड से उत्तरकांड तक ही सीमित नहीं है
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
अनेक पुराण, वेद और तन्त्र शास्त्र से सम्मत साथ ही जो रामायण में वर्णित है और अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री राम की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख हेतु अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में वर्णित करता है
गहन अध्ययन और स्वाध्याय करने वाले तुलसीदास जिन्हें ज्ञान का बोध हो गया था यशस्वी तपस्वी जयस्वी और उस समय के साहित्यिक योद्धा थे
वह समय अत्यन्त निराशा का था
अकबर तबाही मचाए हुआ था
रघुपति के चरितों को संसार में निरत लोगों के मन में प्रवेश करा देना तुलसी का अद्भुत कौशल था
संपूर्ण विश्व के अद्भुत व्यक्तित्व हैं हमें दिशा देने वाले तुलसी
उनकी तुलना शेक्सपीयर से करना हास्यास्पद ही है
आत्मबोध से हमें जाग्रत होने की आवश्यकता है अपने अद्भुत साहित्य से लगाव करने की आवश्यकता है अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन इसके लिए आवश्यक है जो सदाचार ग्रहण करें उसे प्रसरित भी करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने निगदन, साहित्य, पुराण, इतिहास, सर्ग, विसर्ग का अर्थ भी बताया
श्री तरुण विजय का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें