भारत का सम्मान ही,है अपना सम्मान,
बिना देश के कोई भी,कहीं न पाता मान,
कहीं न पाता मान शान कितनी भी रख ले,
मनमोदक का स्वाद चापलूसों से चख ले,
अतः भाइयो देश का सदा बढ़ाओ मान
अपने से अगणित गुना हो भारत सम्मान।
प्रस्तुत है नैःश्रेयस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष
षष्ठी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 08-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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709 वां सार -संक्षेप
1 : आनन्द की ओर ले जाने वाला
बीते कल के उद्बोधन से
राष्ट्र एक परम्परा है देश एक स्थान है जब परम्परा किसी देश से संयुत हो जाती है तब वह भारत माता हो जाती है
केवल भूमि का टुकड़ा नहीं
हम इस परम्परा के वाहक हैं इसीलिए राष्ट्र के प्रति निष्ठा अनिवार्य है
श्रीरामचरित मानस ग्रंथ का पाठ विलक्षण प्रभाव छोड़ता है बार बार इसका अध्ययन मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराता है दुश्चरित्र सुचरित्र पापी पुण्यात्मा दुर्जन सज्जन क्रोधी शान्त निर्दय दयालु और नास्तिक आस्तिक हो जाता है
इसी तरह के सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए आइये प्रवेश करते हैं आचार्य जी, जिनका मूल उद्देश्य रहता है कि
हम भारतीय परम्परा के प्रति किसी भी प्रकार का अविश्वास न रखें, जीवन के प्रति विश्वास रखें, सांसारिक प्रपंचो से हटकर आनन्द के क्षण खोजें
(अपने इतिहास परम्परा पूर्वजों के प्रति अनास्था कमजोरी है)
की
आज की कक्षा में
सबसे पहले तो हमें यह भ्रम ही नहीं पालना चाहिए कि हम कभी पराधीन रहे
हम कभी पराधीन नहीं रहे हम परिस्थितियों से जूझते हुए संघर्षशील रहे
हमारा इतिहास शौर्य पराक्रम संघर्ष का ही रहा है
कहा जाता है
क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयतायाः
जिसे देखने में हर क्षण कुछ नए प्रकार का आनंद प्राप्त हो वही सर्वोत्तम सौंदर्य है
इसी प्रकार महापुरुषों के चरित्रों का बार बार अध्ययन नए नए उद्भावों को जन्म देता है ऐसे ही एक महापुरुष हैं भगवान् शंकराचार्य
वे कहते हैं
दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः ॥
इस संसार में निम्नांकित तीन चीजें को प्राप्त करना वास्तव में अत्यधिक दुर्लभ है, भगवान की अत्यधिक कृपा से ही कोई उन्हें पा सकता है
1. मानव जन्म
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥
2. मुक्ति पाने की तीव्र इच्छा
अर्थात् मोक्ष /स्वतन्त्रता की कामना
3. महापुरुष की संगति
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥
आइये अब प्रवेश करें मानस में
वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंद सामपि,
मंगलानां च कर्त्तारौ वंदे वाणीविनायकौ....
आचार्य जी ने श्रीरामचरित मानस के इस अंश की व्याख्या में बताया कि अमरकोश के अनुसार जिसकी जाति ज्ञात न हो उसे ब्रह्मक्षत्रिय वर्ण माना जाता है जैसे विश्वामित्र
और विश्वामित्र की ही बालकांड में प्रमुख भूमिका है
यह वर्णानाम् बाल कांड हो गया इसी तरह अन्य शब्द शेष कांडों से संयुत हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
श्री दुलीचन्द्र जी,भैया मुकेश जी, भैया पंकज जी, भैया मनीष जी, रामायणी वन्दन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें