प्रस्तुत है नैःश्रेयसिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष
सप्तमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 09-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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710 वां सार -संक्षेप
1 : आनन्द की ओर ले जाने वाला
संसार में संसरण और सार दोनों है आत्मविस्तार और आत्मसंकोच दोनों का ही संसार में अस्तित्व है आत्मविस्तार मनुष्य का आनन्द पक्ष है जब कि आत्मसंकोच दुःख दुविधा का
संसार में संसरण करते हुए सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी जो अल्प क्षण भी स्थिर होने के लिए उपलब्ध है उसमें यदि हमें आनन्द की अनुभूति हो जाए वही बहुत है
दूसरे के लिए कष्ट उठाना दूसरे के द्वारा प्रसन्नता का अनुभव करने पर स्वयं प्रसन्न होना संसार का आनन्द पक्ष है
ऐसे आनन्द में रहने वालों को अपने से हम संयुत करते जाएं और जो दूसरे के आनन्दित होने पर दुःखी हों उनकी उपेक्षा कीजिए
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमश्शाश्वतीस्समा: ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् ।।
वाल्मीकि जी के मुख से निकला यह अद्भुत छंद और रामकथा इतिहास के साथ पल्लवित हो गई वाल्मीकि जी को आदिकवि कहते हैं लेकिन इस धरा पर वैदिक ज्ञान उससे भी पहले उतर चुका था
कवित्व परमात्मा का वरदान है कवित्व लेखन के साथ वाचन और पाठन भी है
जो कवि की रचनाएं सुनते हैं ग्रहण करते हैं वे भी कवि हैं
व्यक्त करने वाले और ग्रहण करने वाले दोनों कवि हैं वे मनुष्यत्व की अनुभूति करते हैं
ऐसे ही एक कवि हैं तुलसीदास जी
वे कहते हैं
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥
श्रोता मां भवानी हैं और वक्ता शिव जी हैं
भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम् ।।
शिव जी की कृपा आवश्यक है अद्भुत है मानस की रचना
मां भवानी साक्षात् श्रद्धा हैं और शंकर विश्वास
वाणी,विनायक, भवानी और शंकर की वन्दना के बाद तुलसी जी गुरु का स्मरण करते हैं गुरु के ज्ञान से अभिभूत हैं तुलसी जी
गुरु का आश्रय तो कहां से कहां पहुंचा देता है
इसके बाद आचार्य जी ने क्या कहा भैया पंकज भैया अरविन्द जी का नाम क्यों आया
जानने के लिए सुनें
( सूचना :आज सरौंहां में होने वाले कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं)