जब तक रहो संसार में हिम्मत कभी हारो नहीं,
विपदा पड़े तो भी कभी नैराश्य को धारो नहीं,
सर्वत्र सर्वाधार की अनुभूति का अभ्यास कर
श्रद्धा-समर्पण से मनस् को कभी निर्वारो नहीं।
प्रस्तुत है नैकषेय -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 10-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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711 वां सार -संक्षेप
1 : नैकषेयः =राक्षस
नैकषेय अर्थात् राक्षस अशान्ति का विस्तार चाहते हैं उनका विकृत भाव ही कुछ न कुछ हड़पने का होता है वह कुछ देना नहीं चाहते हमारे यहां की संस्कृति देने वाली संस्कृति है
भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व को अपना मानती है भारतीय संस्कृति भारतीय विचार भारतीय चिन्तन विशिष्ट है भारत की भूमि भी विशिष्ट है और इसमें हमारा जन्म हमारा सौभाग्य है
आचारः परमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । तस्मादस्मिन्सदा युक्तो नित्यं स्यादात्मवान्द्विजः ll
वेदों और स्मृतियों (कुछ स्मृतियों के नाम हैं याज्ञवल्क्य स्मृति मनु स्मृति वशिष्ठ स्मृति )में जो आचरण व्यक्त है वही सर्वश्रेष्ठ धर्म है अतः आत्मोन्नति चाहने वाले द्विज को इस श्रेष्ठाचरण में निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए
शिष्ट व्यक्तियों द्वारा अनुमोदित और बहुमान्य रीति रिवाजों को आचार कहते हैं
नैतिक मूल्यों के सिद्धांतों पर जीवन यापन करना ही धर्म है
अध्ययन लेखन चिन्तन मनन अभिव्यक्ति आदि प्रकृति पर आधारित हैं जो बाह्य प्रकृति है वही सूक्ष्म रूप में हमारे अन्दर स्थित है इसका जो सामञ्जस्य बैठाता है वह आचारवान् कहा जाता है
इस गहन संस्कृति, इस गुरु गम्भीर देश, इस तरह के वातावरण को प्राप्त कर हम आत्मपरिष्करण और आत्मसंस्करण करें
ग्रामोन्मुखी, राष्ट्रोन्मुखी चिन्तन और विचार भारतीय संस्कृति का परिष्कार और उद्धार है
प्रायः हर आदमी आगे बढ़ना चाहता है और तब उसका सामना अपरिचय से होगा
जितना अपरिच्य उतनी ही शंकाएं कुशंकाएं
इसलिये हम ऐसा परिचय करें कि पीछे आने वाले उसी मार्ग पर गतिमान होके चलें
हम वाणी व्यवहार कर्म संकल्प में सुसंस्कृत बनें
हमारे पास समय कम है कार्य बहुत हैं समस्याएं बहुत हैं भ्रष्टाचार का बोलबाला है
सात्विक शिक्षा से इसका निवारण हो सकता है
इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया आचार्य की परिभाषा क्या है
कामधेनु तन्त्र की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें