प्रस्तुत है नैकृतिक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 11-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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712 वां सार -संक्षेप
1 : नैकृतिक =दुरात्मा
ये सदाचार वेलाएं मानसिक ऊर्जा प्रदान करती हैं
मानसिक ऊर्जा के इस स्रोत का हम दर्शन करें क्योंकि ये हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं
गुरु वही है जो हितोपदेश दे अर्थात् हित का उपदेश
हित हमारा किसमें है?
परिवार के एकीकरण, परिवारबोध , राष्ट्र-बोध, समाज बोध, खाद्य अखाद्य विवेक में हमारा हित है
इन वेलाओं के श्रवण से अपने अंदर आये परिवर्तन की समीक्षा भी करें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन प्रारम्भ हुआ या नहीं खानपान सोना जागना सही हुआ या नहीं देखें
आइये आज की कक्षा में प्रवेश करें
कल्पना और वास्तविकता का मेल साहित्य का मूल धर्म है यह मेल साहित्यिक मर्म भी है
कल्पना उपहास का विषय कदापि नहीं है कल्पना करने पर ही परमात्मा द्वारा सृष्टि कवि द्वारा कविता,कलाकार द्वारा कलाकृति अस्तित्व में आती है। अत: कल्पना महत्वपूर्ण है।
भारतभूमि सत्यानुभूति की पवित्र धरती है
परमसत्य की खोज का सनातन तीर्थ है
परमसत्य के प्रश्न हैं ?
ये कौन चित्रकार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार
हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
कि जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार.....
सृष्टि क्या है
जन्म व मृत्यु क्या है
इस सत्य के उत्तर को खोजने वाले को मुमुक्षु कहते हैं
भारतीय चिन्तन, भारतीय जीवन शैली को आत्मसात् करने पर शांति प्राप्त होती है
हम व्यावहारिक अभ्यास
में निपुणता प्राप्त कर लेते हैं
रामकृष्ण मिशन के संन्यासियों का व्यवहार तथा तितिक्षा अर्थात् सहनशक्ति, जैन मुनियों की कृच्छ्र साधना भारत का वैश्विक चिन्तन अद्भुत है
मिरा अलफासा, भगिनी निवेदिता, एनी बेसेंट आदि विदेशी थीं लेकिन वे यहां से अत्यन्त प्रभावित हो गईं
एनी वुड (एनी बेसेंट ) ने कहा था
भारत में प्रश्रय पाने वाले अनेक धर्म हैं, अनेक जातियां हैं, किन्तु इनमें किसी की भी शिरा भारत के अतीत तक नहीं पहुंची है, इनमें से किसी में भी वह दम नहीं है कि भारत को एक राष्ट्र में जीवित रख सकें, इनमें से प्रत्येक भारत से विलीन हो जाय, तब भी भारत, भारत ही रहेगा. किन्तु, यदि हिंदुत्व विलीन हो गया तो शेष क्या रहेगा तब शायद, इतना याद रह जायेगा कि भारत नामक कभी कोई भौगोलिक देश था
हिन्दु को जगाने का काम बहुत पहले से चल रहा है
आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि
मांगि के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एक न दैबे को दोऊ
में मसीत को सोइबो का क्या वास्तविक अर्थ है
हमारे यहां कर्म के सिद्धान्त को युद्धभूमि में समझाया गया है
भारत की संस्कृति और भारत का राष्ट्र एक दूसरे के पर्याय हैं जो इसे एक दूसरे से संयुत नहीं करता वो भ्रम में है
पश्चिमी जीवनशैली हमें भ्रमित करती है हमें तो अपनी जीवनशैली रास आनी चाहिए
आत्मतुष्टि खोजें संतानों को सही ढंग से पोषित करें
मनुष्य का जीवन का एक एक पल संस्कारों को विकसित करने का है
आत्मिक विकास हो या भौतिक विकास हो इस पर चिन्तन आवश्यक है
इसके अतिरिक्त ,आचार्य जी ने बताया भैया मोहन भैया डा उमेश्वर का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें