12.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-07- 2023

 जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयँ दृढ़ गहहू॥

सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई॥1॥


यदि उस लोक में और इस लोक में अर्थात् दोनों जगह सुख चाहते हो, तो मेरे वचन सुनकर उन्हें हृदय में दृढ़ता से पकड़ लो । हे भाई! यह मेरा भक्ति का मार्ग सुलभ, सुखदायक है, पुराणों और वेदों ने इसे गाया है


प्रस्तुत है उल्लिङ्गित¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 12-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  713 वां सार -संक्षेप

1 : प्रसिद्ध


उत्तर कांड की एक चौपाई है



पुनि कृपाल लियो बोलि निषादा। दीन्हे भूषन बसन प्रसादा॥

जाहु भवन मम सुमिरन करेहू। मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू॥1॥


इसके पश्चात् कृपालु प्रभु राम ने निषादराज को बुला लिया और उसे आभूषण, वस्त्र प्रसाद में दिए

और कहा

अब तुम भी घर जाओ, वहाँ मेरा स्मरण करते रहना और मन, वचन और कर्म से धर्म के अनुसार ही चलना




हमारी आर्ष परम्परा यही कहती है कि हमें तो अपने धर्म के अनुसार ही चलना चाहिए

प्रतिदिन आचार्य जी का भी प्रयास रहता है कि उनके (आचार्य जी) द्वारा प्रोक्त भ्रम रहित सदाचारमय विचारों की वृष्टि से आचरणवान् आचार्य जी के हम मानस पुत्रों के अंदर सदाचारमय विचारों का अंकुरण हो

हम भारतीय संस्कृति के परिपालक बनें अस्ताचल देशों को देख हमें भ्रमित नहीं होना है भय और भ्रम दोनों हानिकारक हैं इन्हें पालने पर 

जो अच्छा है उसे भूल जाते हैं

बुरे का प्रतिकार नहीं करते हैं

 हमें विचार करना चाहिए कि हमारी शिक्षा किस प्रकार की हो

हमारे आत्मतत्त्व का आत्मबोध जागे इसका प्रयास करें


चिदानन्द रूपः शिवोहं शिवोहम्

इससे हमारे अन्दर शक्ति और भक्ति दोनों प्रविष्ट होंगी 

हमें जहां भी जब भी अवसर मिले इन सुस्पष्ट विचारों को अपने अन्दर ढालने का प्रयास करें

अस्तव्यस्त जीवन को सुधारने का प्रयास करें

हम कौन हैं हमारा जन्म क्यों हुआ है हम अपने को अशक्त क्यों समझें

यदि अपने अन्दर से इन प्रश्नों के उत्तर मिलने लगेंगे तो एक नये समुद्योग के साथ उन्नति करने लगेंगे हम अनुभव करें कि हम विशेष हैं

सही खानपान,चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, प्राणायाम सद्संगति आदि द्वारा रामानुभूति का अपने अन्दर प्रवेश कराएं 

प्रातःकाल उत्थान से लेकर शयन तक हम  कर्म करते रहते हैं

और कर्म का प्रतिनिधि है कर अर्थात् हाथ

हम मनुष्यों को कर्म करने के लिए कर की आवश्यकता है ही

परमात्मा को कर की आवश्यकता नहीं


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

इसलिए प्रातः जागते ही मुखर पाठ या मौन पाठ द्वारा हम कहते हैं



कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥


समुद्र वसने देवी, पर्वत स्तन मंडले,


विष्णु पत्नी नमोस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्वमे ।


हमारी भारतीय संस्कृति की चिरन्तन चिन्तन की विधा अद्भुत है

वेद पुराण उपनिषद् गीता महाभारत रामायण रामचरित मानस आदि ज्ञान की निधियों के प्रति हमारी श्रद्धा बनी रहनी चाहिए

इसके अतिरिक्त धरती और आकाश का क्या सम्बन्ध है पहले गांवों का मनोरंजन कैसे होता था आदि जानने के लिए सुनें