वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।7.26।।
हे अर्जुन ! जो प्राणी भूतकाल में हो चुके हैं, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में जन्म लेंगे , उन सभी को मैं तो जानता हूँ लेकिन मुझे कोई मूढ़ मानव नहीं जानता है
प्रस्तुत है अहरणीय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 13-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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714 वां सार -संक्षेप
1 : श्रद्धालु
हमारी भी इच्छा होती है कि हम इस तरह के रहस्यों को जानें जैसे भगवान् तो सबको जानते हैं लेकिन उस भगवान को कोई नहीं जान पाता
गीता के आठवें अध्याय में
सब प्रकार से शक्ति बुद्धि चैतन्य से सम्पन्न अर्जुन के प्रश्न
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।
ब्रह्म क्या है अध्यात्म क्या है कर्म क्या है अधिभूत (भौतिक जगत )तथा अधिदैव (दैव जगत )क्या हैं?
के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।8.3।।
-परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है अपना स्वरूप अध्यात्म है और अधिक स्पष्ट करें तो ब्रह्म का नित्य स्वभाव भी है और अनित्य स्वभाव भी है उसका नित्य स्वभाव ही अध्यात्म है
भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग कर्म है
आचार्य जी ने अमरत्व को भी स्पष्ट किया शंकराचार्य जैसे महापुरुष चिरस्मरणीय चिरस्थायी और शरीर से मुक्त होने के बाद भी चैतन्य जगत में विद्यमान रहते हैं यही अमरत्व है हम इसी के पुजारी हैं क्योंकि हम परम्पराओं पर विश्वास करते हैं इन्द्रियजन्य के अतिरिक्त इन्द्रियातीत पर भी विश्वास करते हैं यही हमारी विशेषता है भारतीय जीवन दर्शन की विशेषता है
भावी संतति में भी इन सब विषयों को शिक्षा के माध्यम से हमें रखना चाहिए इसका परिणाम भी देखें
यह इन सदाचार वेलाओं का मूल उद्देश्य है
अपने मनुष्यत्व को जाग्रत करने के लिए हम प्रयासरत रहते हैं हमारा काम खाना और सोना ही नहीं है
(सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥)
समाजोन्मुखी विचारों से समन्वित संयमित व्यवस्थित संपूर्ण समाज को अपना परिवार मानने का भाव लेकर
हम युगभारती संगठन के रूप में है यही उस अध्यात्म की प्राप्ति का प्रयास है
आचार्य जी ने श्रीगुरु जी समग्र की भी चर्चा की
गुरु जी के भाव राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण रहते थे
हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं यह भारतीय चिन्तन है ऐसी संस्कृति विचारों वाला देश दुनिया में इतना उपेक्षित हो गया ऐसा होना नहीं चाहिए था इसलिए गुरु जी चाहते थे कि हमारे देश बलवान बनाया जाए तभी उसे सम्मान मिलेगा
आचार्य जी ने एकात्ममानववाद को भी स्पष्ट किया
इसके अतिरिक्त 16 को होने वाले कार्यक्रम के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें