प्रस्तुत है अहंयु -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 14-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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715 वां सार -संक्षेप
1 : अहंयु =स्वार्थी
वही सरिता परम पुनीत रहती है जो सतत प्रवाहमान रहती है इसी तरह जीवन जब तक सरिता की तरह रहेगा अर्थात् प्रवाहमह रहेगा आनन्द ही आनन्द रहेगा
प्रवाह है इस अद्भुत संसरण करते संसार को समझकर इसके सत्य को सतत खोजने का
जिसका विनाश होता है, वह संसार है। संसार एक समस्या है उलझाव है संसार भी सत्य नहीं है संसार का जीवन भी सत्य नहीं है। संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है।
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
जीवन का परम सत्य मोक्ष है और उसको ब्रह्म की साधना उपासना ध्यान पूजापाठ जप स्वाध्याय वेद पुराण उपनिषद् गीता मानस के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है । मोक्ष प्राप्ति से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है
इसलिए प्रतिदिन कुछ समय हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय के लिए अवश्य निकालें
लेखन कौशल भी विकसित करें आत्मविस्तार करें
परमात्मा की तरह हम भी अपने परिवार की वृद्धि चाहते हैं
एकोऽहं बहुस्याम
हम चाहते हैं हमारा विस्तार हो
नये नये विचारों का अंकुरण होना हमारे लिए लाभदायक है
बहुत से लोग हैं जिन्हें आत्म -प्रकाशन SELF -REVELATION, SELF -ENLIGHTENMENT का चाव रहता है
मैं हूं का भाव अद्भुत है
मैं हूं अर्थात् अहंकार
गीता से
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश नामक पञ्चमहाभूत मन, बुद्धि तथा अहंकार के साथ मिलाकर आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी 'अपरा' प्रकृति है। हे अर्जुन ! इस अपरा प्रकृति से भिन्न जीव रूप बनी हुई मेरी 'परा' प्रकृति को जान लो
हमारे जीवनदर्शन का अनन्त बोध हमें अमर बनाता है
आचार्य जी परामर्श देते हैं कि रामचरित मानस को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लें
रामचरित मानस मात्र अध्ययन के लिए बांचने के लिए पूजा पाठ के लिए गाने के लिए नहीं है यह तो एक अद्भुत कृति है
जिस काव्यानन्द में मग्न होकर राष्ट्रहितैषी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ का प्रणयन किया है यह भारतवर्ष की अद्भुत घटना है
मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥34॥
सज्जनों के बहुत से समूह सरयू नदी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और हृदय में सुंदर श्याम शरीर श्रीराम का ध्यान करके उनके नाम का जप करते हैं
यह तो उनका भाव है
और
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥
इसका नाम रामचरित मानस है, जिसको सुनते ही शांति मिलती है। मन रूपी हाथी विषय रूपी दावानल में जल रहा है, वह यदि इस मानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो जाएगा
आचार्य जी ने बताया कि बालकांड के दोहे 35,36,37,38 को बार बार दोहराने से अद्भुत अथाह ज्ञान प्राप्त होता है
हमारे यहां ज्ञानियों की लम्बी परम्परा है हम भी ज्ञानी होने की दिशा में अपने कदम आगे करें
आचार्य जी का परामर्श है कि युगभारती के हम सदस्य गम्भीरतापूर्वक किसी भी विषय का गहन चिन्तन कर उसे विचारपूर्वक आगे प्रेषित करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सीमा की चर्चा क्यों की
16 को होने वाले कार्यक्रम के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें