जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥ 35॥
यह रामचरित मानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस हेतु जगत् में इसका प्रचार हुआ, अब वही कथा मैं शिव पार्वती का स्मरण कर कहता हूँ
अद्भुत और अद्वितीय है रामचरित मानस
इसी तरह अद्भुत हैं ये सदाचार संप्रेषण
प्रस्तुत है अध्ययोदधि ¹
आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 15-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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716 वां सार -संक्षेप
1 : अध्यय =ज्ञान
उदधि = समुद्र
आइये मानस का संस्कार करने के लिए, अभ्यास और वैराग्य द्वारा चंचल प्रमथन स्वभाव वाले मन के निग्रह के लिए
(चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।)
, आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए, भौतिक कार्यों की सिद्धि की कामना के साथ साथ संसारेतर शक्तियां प्राप्त करने हेतु और लगातार कर्मशील बने रहने की योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें अध्ययोदधि में क्योंकि इन अद्भुत भावों के संप्रेषणों से लाभ प्राप्त कर हम सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं
इनसे विरति हानिकारक है
और अनुरति लाभदायक है
भौतिकता और आध्यात्मिकता के बीच में झूला झूलते सब रोगों की जड़ मोह अर्थात् अज्ञान से ग्रस्त अर्जुन को रणक्षेत्र में भगवान् कृष्ण समझाते हुए कहते हैं
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।
नि:सन्देह मन चंचल, कठिनता से वश में होने वाला है किंतु, हे अर्जुन ! उसे अभ्यास और वैराग्य द्वारा वश में किया जा सकता है
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।।6.36।।
जिसका मन पूर्ण वश में नहीं है, उसके द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है। फिर भी उपायपूर्वक यत्न करने वाले को योग प्राप्त हो सकता है
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
नहि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।6.40।।
उस पुरुष का न इस लोक में और न ही परलोक में नाश होता है
कोई भी शुभ कर्म करने वाला दुर्गति को नहीं प्राप्त होता है
इसके अतिरिक्त बागेश्वर धाम सिद्ध स्थान कैसे है?
किन आचार्य जी ने घड़ी सीधी की थी?
लाइन से थोड़ी सी बाहर चप्पल को हाथ से सही करने वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें