अनंतानन्त शुभ आशीष मंगल कीर्ति पाने का
रहे आजन्म सुख समृद्धि जग में यश कमाने का
न हो षड्दोष का संपर्क हो बेदाग जगजीवन
न किंचित भय रहे क्षणभर जगत को छोड़ जाने का ।
प्रस्तुत है अध्यात्मरति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 16-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
717 वां सार -संक्षेप
1 : जो परमात्म चिन्तन में सुख का अनुभव करे
परमात्मचिन्तन में सुख का अनुभव कराने वाली,
मनुष्यत्व अमरत्व का संदेश देने वाली, संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानने वाली, साधारण मनुष्य को पुरुषोत्तम बनने की राह दिखाने वाली, शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म को महत्त्वपूर्ण मानने वाली, कर्मप्रधान,अनन्त विचार प्रदान करने वाली,बहुआयामी और संपूर्ण विश्व में अद्वितीय, पवित्र,चारित्र्यसम्पन्न, मंगलमय भारतीय संस्कृति के आधारभूत मूल्यों से भावी पीढ़ी को अवगत कराने हेतु
और भारत को वैचारिक रूप से खंडित करने में असमर्थ आक्रमणकारियों से आगे सचेत रहने के लिए
सनातन फाउंडेशन,युगभारती और विमर्श संस्था द्वारा संयुक्त रूप से आज दिनांक १६ जुलाई २०२३ को एक वैचारिक संगोष्ठी "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: चुनौतियां और हमारी भूमिका" का आयोजन मर्चेंट चैंबर हाल सभागार कानपुर में किया जा रहा है
सहज को जो सुन्दर बना दे वह संस्कार कहा जाता है
इस संस्कार का वैविध्य उचित प्रकार से रचित होकर एक जीवनशैली के रूप में यदि विकसित हो जाए तो इसे एक अद्भुत उपलब्धि कहा जाएगा और इस उपलब्धि को भारतीय जीवन दर्शन ने और भारत की इस धरती ने प्राप्त किया है
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।। — विष्णुपुराण (२।३।२४)
हनुमान जी की प्रेरणा से तुलसी जी को भक्ति प्राप्त हुई भगवान राम उनके इष्ट बने श्रीरामचरित मानस का अवतरण हुआ
श्रीरामचरित मानस की विशेषता देखने के लिए बालकांड के 35 से 43ख संख्या वाले दोहे तक का अंश देखा जा सकता है
जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु।।35।।
अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।
कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद।।43(ख)।।
इन चालीस चौपाइयों और दस दोहों का बार बार पाठ करने से हमें यह समझ में आने लगेगा कि भारत राष्ट्र का राष्ट्रीयत्व किस प्रकार महापुरुषों के माध्यम से अवतरित हुआ है
यह सिलसिला वैदिक काल से आजतक चला आ रहा है कभी कम कभी ज्यादा लेकिन कभी खंडित नही हुआ
इस धरती पर तो अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया इतने महापुरुष अन्यत्र नहीं हुए
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने जीवन को आनन्दमय बनाने हेतु अध्ययन और स्वाध्याय करें
हम राष्ट्र के महत्त्च को समझें
शान्ति आनन्द और जीवन का लक्ष्य पाने के लिए एक अत्यन्त सुगम मार्ग तुलसीजी ने इंगित कर दिया
पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥ 37॥
कथा में जो रोमांच होता है,वे ही वाटिका, बाग और वन हैं और जो सुख है, वही सुंदर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेम रूपी जल से सुंदर नयनों द्वारा उनको सींचता है
मानस में गीता वेद उपनिषद् आदि सब कुछ है
इसमें राष्ट्र राज्य समस्याएं समाधान आदि भी है
इसलिए इसका पाठ अवश्य करें
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें