प्रस्तुत है महान्धकार -संहर्तृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 19-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
720 वां सार -संक्षेप
1 : महान्धकार = आध्यात्मिक अज्ञान
संहर्तृ =नष्ट करने वाला
The destroyer of spiritual ignorance
(जिसका आधार आत्मा है वह ज्ञान आध्यात्मिक है
ज्ञान मन को आत्मा से संयुत करता है
जो मन को आत्मा से नहीं मिलाता है, वह ज्ञान नहीं ज्ञान की भ्रांति है
इसी कारण तथाकथित ज्ञान से मन में अहंकार आ जाता है)
आत्मबोधोत्सव
जो सहज प्रकृति को सद्प्रकृति की ओर उन्मुख कर देते हैं इस सहज प्रकृति में संस्कृति की स्थापना कर देते हैं उन्हें स्थान और समय के परिवर्तन से किसी प्रकार का अंतर नहीं पड़ता है और उनका प्रयास अनवरत चलता रहता है ऐसा ही प्रयास आचार्य जी का इन भावनात्मक वैचारिक संप्रेषणों का नित्य रहता है जिनसे हम लाभ प्राप्त कर रहे हैं
प्रयास इस संसार का महानतम आवश्यक प्रस्थान -बिन्दु है जहां से हम अपनी यात्रा प्रारम्भ करते हैं
अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं॥
पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहों।
स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं॥
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं॥
Just let it be
अब तक तो यह उम्र व्यर्थ ही नष्ट हो गई, लेकिन अब इसे और नष्ट नहीं होने दूँगा। प्रभु राम की कृपा से संसार रूपी रात बीत गई है, अब जागने पर फिर माया/ भ्रम का बिछौना नहीं बिछाऊँगा। मुझे तो राम रूपी सुंदर चिंतामणि प्राप्त हो गई है। उसे कभी गिरने नहीं दूँगा।
प्रभु का जो पवित्र सुन्दर रूप है उसकी कसौटी बनाकर अपने चित्त रूपी सोने को कसूँगा। जब तक मैं इंद्रियों के वश में था, तब तक उन्होंने मनमानी कर मेरी हँसी उड़ाई, परंतु अब इंद्रियों को जीत लेने पर उनसे अपना उपहास नहीं कराऊँगा। अब तो अपने मनरूपी भ्रमर को श्रीराम जी के चरण-कमलों में लगा दूँगा।
हमारा परिवेश बहुत अच्छा है भगवान की इतनी महती कृपा है हमें तो सुधर जाना चाहिए लेकिन हम नहीं सुधरते इसका कारण है हम अपने को नहीं समझते
हम समझते हैं संसार यही है
आचार्य जी का यही प्रयास है कि हम अपने को जानें
हम जिज्ञासु बनें आत्मबोध प्राप्त करें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन सद्संगति अष्टांग योग लेखन राष्ट्र के प्रति हमारी रुचि जाग्रत हो
अपने लक्ष्य के प्रति चिन्ता करें संगठन को मजबूत करें
आगामी चुनाव के लिए जागरूक बनें
स्वयं जाग्रत होकर नई पीढ़ी को भी जाग्रत करें मनुष्यत्व का वरण करें
मन चंचल है उस पर बुद्धि का नियन्त्रण रखें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी के बाबा जी का क्या प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें