प्रस्तुत है एनस्वत् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 20-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
721 वां सार -संक्षेप
1 : एनस्वत् =दुष्ट
अत्यन्त व्यस्त होते हुए आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं हम अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं
हम आनन्द की प्राप्ति के लिए उनसे सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं
आचार्य जी आज रामाज्ञा प्रश्न की चर्चा कर रहे हैं जिसके आधार पर आचार्य जी ने कई विचार किए हैं और वे सही भी निकले हैं
रामाज्ञा प्रश्न तुलसीदास जी की एक ऐसी रचना है, जो शुभ और अशुभ फल विचार हेतु रची गयी है सात-सात सप्तकों के सात सर्गों हेतु पुस्तक देखने पर जो दोहा मिलता है, उसके पूर्वार्द्ध में राम-कथा का कोई प्रसंग आता है और उत्तरार्ध में शुभाशुभ फल।
कथा की दृष्टि से यह मानस से कुछ भिन्न है।
'रामाज्ञा-प्रश्न' की रचना अवधी भाषा में है।
यह उनकी प्रारम्भिक कृतियों में से एक है। इसकी रचना का समय तिथि निम्नलिखित दोहे में आती है-
"सगुन सत्य ससिनयन गुन अवधि अधिक नय बान।
होई सुफल सुभ जासु जस प्रीति प्रतीति प्रमान॥
इस प्रकार रचना की तिथि संवत 1621 है
कथा इस प्रकार है
तुलसीदासजी ने अपने मित्र गंगाराम ज्योतिषी हेतु इसकी रचना की थी। गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लादघाट पर रहते थे।
वे प्रतिदिन सायं काल प्रायः असी घाट पर रहने वाले गोस्वामी जी (तुलसीदास जी को यह सम्मान काशी में ही मिला था ) के साथ संध्या वन्दन के लिए गंगा - तट पर जाते थे।
एक दिन गंगाराम ने कहा- मैं आज गंगा किनारे नहीं जा सकूँगा
गोस्वामी जी ने पूछा- आप अत्यन्त उदास क्यों हैं? ज्योतिषी ने कहा
राजघाट पर दो गढ़बार वंशीय नरेश हैं जिनके अधीन मैं हूं , उनके राजकुमार शिकार के लिये गये थे, किन्तु लौटे नहीं हैं ऐसा समाचार मिला है कि उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है।
राजा ने मुझे आज बुलाया था।
मुझसे पूछा गया कि उनका पुत्र सकुशल है या नहीं, यह बताएं
उत्तर ठीक निकला तो ढेर सारा पुरस्कार मिलेगा अन्यथा प्राणदण्ड मिलेगा
मैं एक दिन का समय
माँगकर घर आ गया हूँ, किन्तु मेरा ज्योतिष-ज्ञान इतना नहीं कि निश्चयात्मक उत्तर दे सकूँ।
तुलसीदास जी को दया आ गयी। उन्होंने कहा- आप चिन्ता न करें। सब ठीक होगा
आश्वासन मिलने पर गंगाराम गोस्वामी तुलसीदास जी के साथ संध्या वन्दन करने चले गये। संध्या वन्दन करके लौटने पर अद्भुत शक्ति भक्ति विश्वास रखने वाले चिन्तक विचारक गोस्वामी जी यह ग्रन्थ रचने बैठ गये। उस समय उनके पास स्याही नहीं थी।
कत्था /खैर घोलकर सरकण्डे की कलम से छ: घंटे में यह अद्भुत ग्रन्थ उन्होंने लिख दिया और गंगाराम को दे दिया।
दूसरे दिन गंगाराम राजा के पास गये। ग्रन्थ से शकुन देखकर उन्होंने बता दिया राजकुमार सकुशल हैं
और बात सही निकली
राजकुमार सकुशल ही थे। उनके किसी साथी को बाघ ने मार डाला था, किन्तु राजकुमार के लौटने तक राजा ने गंगाराम को बन्दीगृह में बन्द रखा। जब राजकुमार घर लौट आये, तब राजा ने ज्योतिषी गंगाराम से क्षमा माँगी और बहुत अधिक धन सम्पत्ति दे दी। उन्हें प्रतिष्ठा भी मिली l वह सारा धन गंगाराम ने गोस्वामी तुलसीदास के चरणों में लाकर रख दिया। गोस्वामी जी को तो धन नहीं चाहिए था, किन्तु गंगाराम के बहुत कहने पर उनके सन्तोष के लिये कुछ राशि लेकर उनसे हनुमान जी के दस मन्दिर बनवा दिए । उन सभी मन्दिरों में दक्षिणाभिमुख हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं।
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग इसके दोहों की स्वयं जांच कर सकते हैं
साथ ही हम सब लोग श्रीरामचरित मानस का भी पाठ करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम क्यों लिया भैया मुकेश जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें