प्रस्तुत है कल्याणधर्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 24-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
*725 वां* सार -संक्षेप
1 : गुणसम्पन्न
यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का
चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है
देवों और असुरों के बीच संग्राम लगातार चल रहा है
दुष्ट अपने स्वभाव के अनुसार दुष्टता करते हैं
हमारा स्वभाव इन दुष्ट लोगों से भिन्न है हम दैवीय शक्तियों के संवर्धन का प्रयास लगातार करते हैं हमारा परिवेश भी इसी तरह का रहता है आचार्य जी की प्रेरित और प्रभावित करने वाली वाचिक वार्ता द्वारा हम आत्मबोध -कल्याण मनाने के लिए तैयार हो रहे हैं
दुष्टों से संघर्ष में विजय का भाव हम अवतारी राष्ट्र भक्तों में होना चाहिए और भारत की संस्कृति की रक्षा के लिए तत्पर रहते हुए हम लोगों का यह प्रयास भी होना चाहिए कि हम अपना प्रकाश अंधकार में भटकने के लिए विवश की गई नई पीढ़ी को भी दें और उसे कुचक्रों से बचाएं
मानस अद्भुत है
भगवान राम हमें प्रेरित करते रहते हैं वे नीति की रक्षा करते रहते हैं
सब कुछ जानने वाले, सबके हृदय में निवास करने वाले, मनुष्य के रूप में लीला करने वाले तथा राक्षसों का नाश करने वाले प्रभु रामजी नीति की रक्षा करने वाले वचन बोले
सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥
संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥3॥
इस पर लंकापति विभीषण जी ने कहा- प्रभु सुनिए, यद्यपि आपका एक बाण ही करोड़ों समुद्रों को सोखने वाला है सोख सकता है, तथापि उचित यह होगा कि पहले समुद्र से प्रार्थना की जाए
सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई।
मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दु:ख पावा॥1॥
यह मन्त्रणा लक्ष्मण जी को अच्छी नहीं लगी
दुःखी हुए लेकिन लक्ष्मण जी द्वारा उत्तेजित करने पर भी राम जी हंसकर बोले
ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥
अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥3॥
कवितावली के कुछ रोचक पदों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी कहते हैं कि राम जी ने बहुत सी विषम परिस्थितियों का सामना किया लेकिन अपने लक्ष्य से डिगे नहीं हम ऐसे राम के भक्त हैं
हम भी विषम परिस्थितियों के आने पर अपने लक्ष्य से डिगें नहीं हम अपनी साधना से डिगें नहीं
साधकों को विजय मिलती ही है
विकट परिस्थिति आने पर रूप बदल सकते हैं भाव नहीं बदलें
हम जिस परंपरा के वारिस हैं वो बहुत महान है भारतभूमि महान है यह भाव हृदय से निकलना चाहिए
विश्वास रखें
हम युगभारती संगठन के सदस्य हैं हम आपस में विद्वेष न रखें एक दूसरे का ख्याल रखें जिन जिन जगहों पर सुधार की आवश्यकता है उन्हें देखें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वाराणसी में होने वाली बैठक के लिए क्या कहा भैया अमित अग्रवाल जी का उल्लेख क्यों हुआ सन् 1974,1975,1976 के कुछ प्रसंग क्या थे जानने के लिए सुनें