हम उत्तम अवसरों की प्रतीक्षा न करें अपितु साधारण समय को ही उत्तम अवसर में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील
रहें व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने का मौका न गवाएं क्योंकि व्यक्तित्व बनने पर व्यक्ति की क्षमताएं योग्यताएं संयम कर्मशीलता दिखने लगती है
यह अति महत्त्वपूर्ण असामान्य सदाचार संप्रेषण भी ऐसा ही एक सुअवसर
GOLD IN THEM THAR HILLS है शिशुपन के भाव से उत्थित होने का अवसर है
हम भी सागर पर पत्थर तैराने की क्षमता रखते हैं यह बताने का मार्ग है
प्रस्तुत है हित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 25-07- 2023
का सदाचार संप्रेषण
726 वां सार -संक्षेप
1 : परोपकारी
प्रायः हम सभी भ्रमित रहते हैं भय से ग्रसित रहते हैं सफलता हेतु सभी प्रयास करते हैं विफलता में विलाप करते हैं
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़
कठोपनिषद् में गौतम ऋषि के पुत्र नचिकेता का मृत्यु के देवता यम के साथ संवाद चल रहा है । यम नचिकेता
को सृष्टि के अंतिम सत्य परमात्मतत्त्व के बारे में बता रहे हैं l परमात्मा तो ऐसा है
जो न शब्द है, न स्पर्श और न रूप , जो अव्यय है लेकिन जिसमें न रस है न गन्ध है, जो नित्य , अनादि, अनन्त है, 'महान् आत्मतत्त्व' से भी परे है, ध्रुव है उसका दर्शन करके मृत्यु के मुख से मुक्ति मिल जाती है।
अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥
इसलिए
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।
(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)
उठो, जागो, और ज्ञानी श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान की प्राप्ति करो विद्वानों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी तरह दुर्गम है जिस प्रकार छुरे की पैनी धार पर चलना
,, आती हैं लेकिन हमें विचलित नहीं होना चाहिए
हम सभी क्षमतावान हैं
जब हनुमान और अंगद लङ्का में दुबारा जाते हैं
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥
लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥
तो राक्षसों ने प्रदोष काल का बल पाकर रावण की दुहाई देते हुए उन पर धावा बोल दिया
दोनों दल हार नहीं मान रहे थे
इसे हम आज की परिस्थितियों से संयुत कर लें
किसी के कुछ करने का इन्तजार न करें स्वयं आगे आएं चुनाव आने वाले हैं अपने विचारों से भ्रमित जनता का भ्रम दूर करें
इसके बाद लक्ष्मण जी को शक्ति लगती है तो हम हनुमान जी की क्षमता देखते हैं हम उन्हीं अतुलित बल वाले हनुमान जी के भक्त हैं हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए
हम अपनी छुपी हुई क्षमताओं को बाहर निकालें
यह सब तब होगा जब हमारा खानपान संगति व्यवहार आदि सही होगा अस्ताचल देशों के कारण भ्रमित हुए समूह को देखकर हम उनकी नकल न करें न ये कहें आज की society ऐसी है
अपने मनुष्यत्व को पहचानें
हम प्राचीन काल में ही प्रगति कर चुके थे आज के विज्ञान से भी अधिक उन्नत विज्ञान था हमारा
आत्मबोध का उत्सव मनाने के लिए तैयार हों
संगठित होने का प्रयास करें
विचारों पर कार्यान्वयन करें आगे के पांच दस साल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं
अमरत्व के पुजारी हम पुत्र इस धरा के
उज्ज्वल हमीं करेंगे भवितव्य मातृ भू के
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रदीप सिंह का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें