27.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 728 वां सार -संक्षेप

 साधु समाज न जाकर लेखा। राम भगत महुँ जासु न रेखा॥

जायँ जिअत जग सो महि भारू। जननी जौबन बिटप कुठारू॥4॥


प्रस्तुत है हितान्वेषिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 27 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  728 वां सार -संक्षेप

1 : कुशलाभिलाषी



इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना


किन्तु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं ।


 महाकवि जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ – १५ नवंबर १९३७)की यह कविता मनुष्य को साहसिक अभियान पर चलने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य को मनुष्यत्व का अनुभव करने की प्रेरणा देती है l

जीवन एक लम्बी यात्रा है लेकिन यदि यह सुखद हो निरापद हो आनन्दमयी हो तो यह बात अलग है 

निर्विघ्न यात्रा के लिए हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आश्रय लेना होगा और इसके लिए  बलशाली लोगों के एक मजबूत संगठन की आवश्यकता है जिसका इतना भय हो कि दुश्मन आंख उठाने से पहले एक बार सोचे और वह आक्रमण करे विघ्न डाले तो हम उसको परास्त कर दें समस्याएं आती रहती हैं लेकिन हमारे पास समाधान भी रहते हैं समस्या न सुलझे तो व्याकुल नहीं होना चाहिए हमें आशान्वित रहना चाहिए 

यात्रा के   पड़ावों के मंगल आयोजन होने चाहिए

मानस में व्याकुलता के पश्चात् भरत जी महाराज ने एक यात्रा का आयोजन किया है  उनके मित्र निषादराज शंकाग्रस्त हैं


जानहिं सानुज रामहि मारी। करउँ अकंटक राजु सुखारी॥

भरत न राजनीति उर आनी। तब कलंकु अब जीवन हानी॥3॥

और कहते हैं


राम प्रताप नाथ बल तोरे। करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे॥

जीवन पाउ न पाछें धरहीं। रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं॥1॥

भगवान् रामजी के प्रताप से और आपके बल से हम लोग भरत की सेना को बिना वीर और बिना घोड़े की कर देंगे । जीते जी पीछे पाँव न रखेंगे। पृथ्वी को सिर और धड़ से सजा देंगे l




ऐसा हौसला हम सबको रखना चाहिए  हमारे अन्दर भी अद्भुत विचार आ सकते हैं और हम   बड़े से बड़े काम कर सकते हैं इस ईश्वरीय लीला का अनुभव हम भी कर सकते हैं और इस पर विश्वास करें तो यह प्रतिफलित भी होती है

निषादराज को पता चलता है कि भरत तो श्री रामचन्द्रजी को मनाने जा रहे हैं।

और 

दण्डवत करते देखकर भरत जी  महाराज ने उठाकर उसको छाती से लगा लिया। जैसे स्वयं लक्ष्मण जी से भेंट हो गई हो


ये द्रवित करने वाले प्रसंग हैं

ये हमें  यदि द्रवित कर देते हैं तो इसका अर्थ है मानस हमारे अंदर प्रवेश कर रहा है

इसी कथा का विस्तार करते हुए आचार्य जी कहते हैं भक्त भगवान् से कम नहीं है भक्त और भगवान् जब एक हो जाते हैं तो भक्ति की रचना होती है

हमारे क्रान्तिकारियों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने भारत की भक्ति की

जैसे भरत के मन में राम हैं ऐसे ही इन क्रान्तिकारियों के मन में भारत समाया था जैसे चन्द्रशेखर आजाद शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का एक ज्वलंत उदाहरण

ऐसे महापुरुष भारत की धरती पर थे हैं और आगे भी रहेंगे


अखंड भारत का संकल्प हमारा रहेगा ही

हम नित्य अपनी समीक्षा करें

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार। 


रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया नीरज जी भैया अमित अग्रवाल जी का नाम क्यों लिया खली का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें