29.7.23

औजस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 730 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है औजस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  730 वां सार -संक्षेप

(सार -संक्षेप के दो वर्ष पूर्ण )

1 : बल और स्फूर्ति का संचारक


भगवान की अत्यन्त कृपा है कि एक बहुत अच्छा कार्य इस सदाचार संप्रेषण के रूप में चल रहा है जो हमारे भय और भ्रम का निवारण करने में सक्षम है हमें सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता है मनुष्यत्व  की अनुभूति कराता है राष्ट्र के  प्रति निष्ठावान बने रहने का हौसला देता है समाज के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है बाह्य परिस्थितियों से व्याकुल न होने की हिम्मत देता है कभी कालनेमियों से जूझने तो कभी कालनेमियों की उपेक्षा करने की प्रेरणा देता है

 हमें शक्तिमय बनाना उत्सहित करना संगठित रहने की आशा देना इसका उद्देश्य है  यह बार बार हमें अपने लक्ष्य अखंड हिन्दू राष्ट्र की याद दिलाता है 

यह अवचेतन मन की शक्ति की पहचान कराता है 

अवचेतन मन की शक्ति बताने के लिए आचार्य जी करपात्री जी महाराज का उदाहरण दे रहे हैं 

अद्भुत सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,दशनामी परम्परा के संन्यासी,परम विद्वान, ज्ञान -विग्रह शिवोपासक 

धर्मसम्राट स्वामी करपात्री (करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) (१९०७ - १९८२)    मूल नाम हरि नारायण ओझा   दीक्षोपरान्त  नाम 'हरिहरानन्द सरस्वती'

अस्वस्थ हो गए उनका पूजा का इतना अधिक अभ्यास था कि बेहोशी की हालत में भी शिवार्चन के समय उनका दाहिना हाथ जल   चढ़ाने के लिए उठ जाता था

ऐसी होती है अवचेतन मन की शक्ति



हम भी अपने अवचेतन मन की शक्ति को पहचाने

हमने  इस  पवित्र धरती पर जन्म लिया है

यहां की गंगामयी यज्ञमयी संस्कृति अद्भुत है

हम संयम के साथ अपनी शक्ति जगाएं

संयम न होने पर व्याकुलता की वृद्धि होती है

संयम का व्यापक अर्थ है उसे भांपना और उसका समय पर सदुपयोग करना


भगवान् राम घोर युद्ध में संलग्न हैं भक्त विभीषण साथ में है  भगवान राम ने दुविधाग्रस्त विभीषण को धर्मरथ अर्थात् रामगीता का उपदेश दिया है


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥

अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥


रावण रथ पर और श्री राम को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि बिना रथ के रावण को  मेरे प्रभु कैसे जीत सकेंगे


अविश्वास हमें हानि पहुंचाता है

उस लंका कांड की हम आज के वैचारिक प्रजातांत्रिक युद्ध से तुलना कर सकते हैं

प्रेम और संदेह के कारण हमारा कार्य प्रायः बाधित होता है

धर्मरथ  जीवन में अभ्यास में लाने के लिए है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा जी एन वाजपेयी,जी डा संकटा प्रसाद जी,कैप्ट. शिवेन्द्र सिंह, गुरु जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें