30.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण *731 वां* सार -संक्षेप

 प्रभा प्रकीर्ण हो रही निशा विदीर्ण रो रही

करो मनस्मरण कि शक्ति शौर्य युक्त हो रही।


प्रस्तुत है हारीत -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *731 वां* सार -संक्षेप


 1: हारीतः =धूर्त



प्रेम, आत्मीयता, परिवार- भाव अपनी शक्ति का संवर्धन करता है काल्पनिक समस्याओं को भुला देता है मन प्रसन्न कर देता है आनन्दमयी वातावरण निर्मित कर देता है इसलिए हमारे यहां समूह, संगठन महत्त्वपूर्ण है


शरीर मन बुद्धि विचार आदि का संयुक्त चिन्तन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसकी महत्ता को हमने जितना समझा है वह अन्य किसी देश ने नहीं समझा है  हमारे यहां इसके चिन्तन के साथ इसके व्यावहारिक स्वरूप की प्रस्तुति अद्भुत रही है

आइये आज हम प्रेम आत्मीयता श्रद्धा परिवार- भाव आदि सद्गुणों को ग्रहण करने का संकल्प लें क्योंकि प्रेम के अभाव में समस्याएं और अधिक ऊर्ध्वगामी हो जाती हैं, अपने विचारों को स्थिर बनाएं, भय और भ्रम का त्याग करें,दुरध्व पर चलने से बचें सुकृत्यों का पवित्र उद्यान बनाकर धनदौलत की वृद्धि करें

ज्ञान कर्म उपासना के त्रिकोण के महत्त्व को समझें 

शान्ति और सद्व्यवहार का वातावरण निर्मित करें 

सामाजिक ढांचे को मजबूत करें 

इसी ढांचे को तुलसीदास जी ने  प्रेम के प्रवाह मानस में मजबूत किया है जिसे उस समय की परिस्थितियों से संयुत कर यह संकेत दिया कि संगठन महत्त्वपूर्ण है आपसी मतभेदों को भुलाना अनिवार्य है क्योंकि दुष्ट अकबर के कारण  अपना धर्म सुरक्षित नहीं है 

मां कैकेयी द्वारा परिवार विखंडन की बाध्यता एक अलग विषय है लेकिन जो उन्होंने वरदान मांगे



होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।

मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥33॥


यदि प्रातःकाल होते ही मुनि का वेष धारण कर  राम वन को नहीं जाते हैं तो   समझ लीजिए कि मेरा मरना निश्चित है जिससे आपका अपयश ही होगा




भरत राजमुकुट धारण कर प्रसन्न होंगे लेकिन


चहत न भरत भूपतहि भोरें।


भरत भरत हैं तुलसीदास जी बहुत सी वृत्तियों के साथ भरत के भीतर प्रविष्ट हो गए हैं

भरत राम जी को वापस लाने का संकल्प ले लेते हैं

भरत -निषाद मिलन में


करत दंडवत देखि तेहि भरत लीन्ह उर लाइ।

मनहुँ लखन सन भेंट भइ प्रेमु न हृदयँ समाइ॥193॥


देवता अच्छे काम की सराहना करते ही हैं इसलिये सत्कर्म हमारे लिए आवश्यक हैं

मानस में उठे हरेक विषय की गहराई में हम लोग जाने का प्रयास करें

तुलसीदास जी कथा में क्या कहना चाहते थे और सिद्धान्त में क्या कहना चाहते थे

उलझनों में यदि हम हैं तो मानस का पाठ करें समस्याएं सुलझती चली जाएंगी 

संसार से विदा होने वाले मार्ग पर जब हम चलते हैं तो हमारा स्वभाव भिन्न हो जाता है 

इसके अतिरिक्त भैया अरविन्द जी, करपात्री जी, सुदर्शन चक्र जी का नाम क्यों आया हेलिन चाची कौन थीं आदि जानने के लिए सुनें