श्री गनेस सुमिरन करूं,
उपजै बुद्धि प्रकास।
सो चरित्र बरनन करूं,
जासों दारिद नास l l
प्रस्तुत है अनुयोगकृत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण
732 वां सार -संक्षेप
1: Spiritual Teacher
(यदि हम संसार के सत्य को समझ लेते हैं तो मृत्यु के समय निराश नहीं होते )
अपनी पत्नी को ज्ञान के सामने धन की महत्त्वहीनता बताते हुए सुदामा कहते हैं
सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब देति है सिच्छा।
जे तप कै परलोक सुधारत‚ संपति की तिनके नहि इच्छा।
मेरे हिये हरि के पद–पंकज‚ बार हजार लै देखि परिच्छा
औरन को धन चाहिये बावरि‚ ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा
भिक्षा का अर्थ भीख नहीं है यह मधुकरी अद्भुत है राजा का पुत्र भी मधुकरी मांगने में संकोच नहीं करता था
ऐसा था हमारे यहां का शिक्षा का स्वरूप
भारतीय संस्कृति के रक्षक आचार्य जी ने भी धन कमाने के लिए कभी शिक्षा नहीं देनी चाही शिक्षक का वर्तमान स्वरूप आपको पीड़ा पहुंचाता है
शिशुपन से गौमुखी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों के सान्निध्य में आपके संस्कार पल्लवित हुए
आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य और व्यवहार को शिक्षा में सम्मिलित कर लिया
यह नित्य की सदाचार वेला संघ की शाखा जैसी ही है
परिस्थिति और परिवेश के अनुसार संस्कृति में परिवर्तन संभव है लेकिन संस्कृति संस्कृति ही रहती है
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
राष्ट्र के प्रति हमें निष्ठावान होना ही चाहिए
राष्ट्र -निष्ठा की भावना हमारे अन्तःकरण में जलती रहे संघठन के महत्त्व को समझते हुए संगठित कार्यशक्ति हमारे सनातन धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो ऐसा प्रयास हम करें कर्मपथ के पंथी आचार्य जी हमसे बार बार यही कहना चाहते हैं
आपके मन में यह भाव लगातार दहकता रहता है
हमारे मन में कायरता नहीं आनी चाहिए गीता में भी यही संदेश है सफलता के लिए युद्ध भी आवश्यक है अपनी आत्मज्योति जाग्रत करें और ज्योति को ज्वाला बना दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई
हूं कर्मपथ का पंथी फिर अपनी परिभाषा क्या......
आचार्य जी ने लगभग बीस वर्ष पहले यह कविता लिखी थी
श्री ठाकुर साहब और एक अभिभावक से संबन्धित क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें