1.8.23

¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 733 वां सार -संक्षेप

 एषां भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपो रसोऽपामोषधयो रस ओषधीनां पुरुषो रसः पुरुषस्य वाग्रसो वाच ऋग्रस ऋचः साम रसः साम्न उद्गीथो रसः॥



पृथ्वी इन सभी प्राणियों का रस है और जल पृथ्वी का रस है; खेत की जड़ी-बूटियाँ जल का रस हैं; मनुष्य जड़ी-बूटियों का रस है. वाणी मनुष्य का रस है, ऋग्वेद वाणी का रस है, साम ऋच् का रस है। साम का  उद्गीथ अर्थात् ॐ ही रस है।


प्रस्तुत है अध्यात्म -अध्वग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 1 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  733 वां सार -संक्षेप


 1: अध्वगः =सूर्य



अच्छी संस्थाओं के किसी भी कार्यक्रम या कार्य की योजना में हमें विचारपूर्वक सक्रियता से भाग लेना चाहिए क्योंकि ऐसे कार्यक्रम और योजनाएं आत्मविकास में सहायक होती हैं

आचार्य जी हम लोगों को प्रतिदिन प्रेरित करते हैं हमारा उत्साहवर्धन करते हैं हमें उत्थानोन्मुख करते हैं

परिस्थितियां इस समय विषम हैं इस कारण कर्म की महत्ता अधिक हो जाती है

 मात्र प्रेरणा देने से काम नहीं चलेगा

वाणी प्रभावशालिनी तभी होती है जब हम जो कुछ कहते हैं वह करते भी हैं

कथनी और करनी में अन्तर नहीं होना चाहिए


हमारा व्यक्तिगत जीवन भी तपोमय होना चाहिए ऐसा जीवन निश्चित रूप से प्रभावकारी होता है


अपनी शक्ति भक्ति बुद्धि विचार कौशल के अनुसार हम यज्ञमयी संस्कृति के उपासक श्रद्धा भक्ति समर्पण का भाव रखते हुए समाज के लिए राष्ट्र के लिए जितना कर सकते हैं करें यही समाजोन्मुखता है राष्ट्रोन्मुखता है


आत्मानन्द के लिए


राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार। 


‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥


इष्ट का ध्यान जप तप अपने भीतर की ऊर्जा को परिमार्जित करने का एक साधन है यही ऊर्जा लेखन पारस्परिक चर्चा विमर्श कार्य योजनाओं में व्यक्त हो जाए तो आनन्द ही आनन्द है

युग -भ्रान्ति से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए अपना खानपान व्यवहार सात्विक रखना चाहिए अपनी भाषा संस्कृति पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए 

कर्म करें हाथ पर हाथ धरकर न बैठें 

हमारी व्याकुलता स्वतः समाप्त हो जाएगी क्योंकि हम कार्यरत हो चुके हैं

करने में फल की भी इच्छा न करें


लेखन -योग, अध्ययन,ध्यान, धारणा, संयम,भक्ति, शक्ति,सेवा,स्वाध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है स्रष्टा ने विश्वासपूर्वक हमें कर्म करने के लिए भेजा है मनुष्य के रूप में अपने मनुष्यत्व का हमें अनुभव करना चाहिए


आचार्य जी अपनी रचित एक कविता में कहते हैं 


भावना हूं सृजन का विश्वास हूं........

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी आगामी यात्रा के बारे में क्या बताया है जानने के लिए सुनें