2.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 2 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 734 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -अध्वगा ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 2 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  734 वां सार -संक्षेप


 1: अध्वगा =गङ्गा



इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है कि हम बुरी आदतों की उपेक्षा करें और अच्छी आदतों को विकसित करें

तप ध्यान योग दान लेखन स्वाध्याय अध्ययन अच्छी आदतें हैं 

परमात्मा की लीला अद्भुत है

भारतवर्ष की एक अद्भुत निधि और अद्वितीय जीवनीशक्ति यह है कि हमारे यहां संसार और संसार से इतर दोनों का चिन्तन हुआ है

हम संसार में केवल भोग के लिए नहीं आये हैं

हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए

बहुत से प्रपंचों में फंसने के बाद भी आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत करते हैं यह परमात्मा की विशिष्ट कृपा है अविद्या के साथ हमें विद्या को भी जानना चाहिए  ऋषित्व अद्भुत है लेकिन हमारे सामने जो ऋषि की तस्वीर खींची गई है वह गलत है ऋषि अनुसंधानकर्ता हैं वे सत्य को जानते हैं 


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग तैत्तिरीय उपनिषद्  (शिक्षा की जानकारी हेतु) और कठोपनिषद् का पारायण करें

स्वयं अध्ययन करें और इसका अध्यापन भी कराएं

अपने परिवारों विद्यालयों संस्कार केन्द्रों में इनका सहज भाषा में कथात्मक रूप में प्रस्तुतिकरण अद्भुत परिणाम ला देगा ऐसा करने से जीवन शैली ही बदल जाएगी




 व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने के ये उपनिषद् बहुत अच्छे स्रोत हैं


कठोपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत निहित है। 

कठोपनिषद् में  नचिकेता और यम के बीच हुए संवाद का अत्यन्त प्रसिद्ध उपाख्यान है। वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता ने पिता से बार-बार पूछा कि आप मुझे किसको प्रदान करेंगे? तो पिता ने खीजकर उसे यम को दान करने की बात कह दी

प्राणिक संचेतना अद्भुत है यम कहते हैं


एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा एकं रूपं बहुधा यः करोति।

तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम्‌ ॥



सारे प्राणियों के अन्तर् में जो स्थित है शान्त है और सबको वश में रखने वाला है वह 'आत्मा' एक ही रूप को बहुत प्रकार से रचता है

 जो धीर पुरुष 'उस' का आत्मा में शीशे के समान दर्शन करते हैं उन्हें शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है, इससे इतर अन्य लोगों को नहीं हो पाती


इतना सब सुनने के पश्चात् 

नचिकेता को समझ में सब कुछ आ जाता है और उनकी संसार में वापस जाने की इच्छा नहीं होती 


अंगुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये सन्निविष्टः।

 

 अंगूठे जितना परम पुरुष हमेशा पुरुषों के दिल में रहता है।

जो अपने भीतर विद्यमान है वह अद्भुत है लेकिन हम अनुभव नहीं कर पाते हम कौन हैं इस पर चिन्तन करना चाहिए इस चिन्तन से हम संसार में रहते हुए भी संसार से अलग होने का अनुभव करते हैं कमल की तरह


अध्यात्म विद्या को जानकर हम मृत्यु आदि विकारों से दूर हो जाते हैं

हमारा " राष्ट्रीय विचारधारा"  के पल्लवन का उद्देश्य भी  है 

हम इस ओर भी ध्यान देते रहें 

किस यज्ञ में सब कुछ दान कर दिया जाता है

उद्दालक ऋषि के मन में कौन सा विकार आया 

आदि जानने के लिए सुनें