पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया
कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया
केवल भाषा तक सीमित है संयम विवेक सच सदाचार
आचरण भ्रष्ट दुनियादारी के नाम लिख रहे कदाचार
ईश्वर या अखिल नियन्ता को केवल विपत्ति में करें याद
आपदा टली अलमस्त हुए फिर शुरु हुआ लोकापवाद
क्या खूब बनाई स्रष्टा ने यह अद्भुत इंसानी दुनिया
उपदेश दूसरों के खातिर खुद बने हुए मन के गुलाम
अपनों पर अत्याचार परायों को करते फिरते सलाम
बेहतर वाणी के बोल मगर कर्मों में केवल बरबादी......
(13 दिसंबर 2015)
प्रस्तुत है वयस्थ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*744 वां* सार -संक्षेप
1: शक्तिशाली
प्रायः हमारे इष्ट प्रातःकाल हमें दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं हमारे ऋषि भी ब्रह्म वेला के जागरण पर जोर देते थे देर से जागने का बहाना बनाना हमारा ही नुकसान करता है देर का जागरण हमें बहुत से प्रपंचों में उलझा देता है इसलिए प्रातःकाल जल्दी जागना महत्त्वपूर्ण है
हमारे इष्ट की कृपा से प्राप्त दिशा दृष्टि हमें प्रेरित करती है कि हम आचार्य जी की इन सदाचार वेलाओं का लाभ लें अपने जीवन को व्यवस्थित करें अपनी एक समय सारिणी बनाएं समय की व्यवस्था अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर जीवन में आ रही समस्याओं का हम हल प्राप्त करें सदाचारमय विचारों को प्रतिदिन इन वेलाओं से ग्रहण करना अद्भुत है अद्वितीय है
स्रष्टा द्वारा प्रविष्ट अपने भीतर के आत्मतत्व को,शक्ति को पहचानने का प्रयास करें
आत्मस्थ होकर विचार करें हम केवल शरीर नहीं हैं केवल मन नहीं हैं केवल बुद्धि नहीं हैं हम इन सबका संयम हैं और प्राणतत्व परमात्मा की एक ऐसी अद्भुत लीला है जो हमें बहुत कुछ प्रदान करती है
इसी असीमित शक्ति को हम प्राप्त करने की चेष्टा करें पुरुष हैं तो पुरुषार्थ करें
ध्यान धारणा संयम आसन अध्ययन चिन्तन मनन लेखन स्वाध्याय प्राणायाम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म संगठन महत्त्वपूर्ण हैं इनको अपने जीवन में उतारें
माहौल ऐसा बन रहा है कि हमें वेदों पुराणों उपनिषदों श्रीमद्भगवद्गीता रामचरितमानस आदि सद्ग्रन्थों की उपयोगिता कुछ कुछ समझने में आने लगी है
आचार्य जी ने कल परामर्श दिया था कि हम गहनता से परिपूर्ण तैत्तिरीय उपनिषद् का अध्ययन अवश्य करें
इसी उपनिषद् में है
तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः। आकाशाद्वायुः । वायोरग्निः। अग्नेरपः । अद्भ्यः पृथिवी। पृथिव्याओषधयः। ओषधीभ्योऽन्नम्। अनात्पुरुषः। स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः। तस्येदमेव शिरः। अयं दक्षिणः पक्षः। अयमुत्तरः पक्षः। अयमात्मा । इदं पुच्छं प्रतिष्ठा। तदपयेश् श्लोको भवति ॥
यह स्व आत्मा है, आत्मा से आकाश का जन्म हुआ
और आकाश से वायु , वायु से आग,आग से पानी, पानी से पृय्वी, पृथ्वी से जड़ी-बूटियाँ और पौधे
जड़ी-बूटियों और पौधों से भोजन, भोजन से मनुष्य का जन्म हुआ
सत्य है कि यह मनुष्य भोजन के आवश्यक पदार्थ से बना है
और यह जो हम देखते हैं, यह उसका सिर है यह उसका दाहिना भाग यह उसका बायां भाग
और यह उसका स्वत्व
यह उसका निचला अंग जिस पर वह स्थायी रूप से विश्राम करता है
आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि शिक्षक शिक्षार्थी के कहने सुनने का शैक्षिक प्रबन्धन हमारे देश की विशेषता है और इसी कारण वेद अर्थात् ज्ञान का एक नाम श्रुति है
विद्या ज्ञान का आधार और शिक्षा विद्या का आधार है वास्तव में शिक्षा वास्तविक सत्य को जानने के लिए है वह सत्य जो अपने को परिवर्तित न करे और परिवर्तनशीलता सत्य और मिथ्या का योग है
इन सबको विस्तार से जानने के लिए सुनें यह सदाचार संप्रेषण