*जीवन तन मन विवेक का अद्भुत संगम है*
*यह नाट्य मंच पटकथा और अभिनय अनूप*
*इसमें सब कुछ हर समय घटित होता रहता*
*यही निशीथ की छांव दिवस की यही धूप*
(25-10-2013 को आचार्य जी द्वारा लिखी एक कविता के अंश )
प्रस्तुत है न्यग्भावित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*747वां* सार -संक्षेप
1: श्रेष्ठता को प्राप्त
यह संसार अद्भुत है परमात्मा की इसी अद्भुत सृष्टि में हम जन्म लेते हैं विचरण करते हैं और विदा हो जाते हैं और पुनः संसार की तैयारी करते हैं
बिन्दु से सिन्धु सिन्धु से बिन्दु
तक की यात्रा चलती रहती है
वसुधैव कुटुम्बकम् विलक्षण सात्विक चिन्तन है
यह सब हमारे साहित्य द्वारा हमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त है
हमें अनेक बौद्धिक प्रतिभाएं प्राप्त हैं हमारी विचारधारा संपूर्ण विश्व को सुरक्षित रखने में सक्षम है
प्रतिदिन इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से अद्वितीय बौद्धिक प्रतिभासम्पन्न आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर सद्गुणों का समावेश हो जैसे चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय आदि
हम अध्यात्म का आनन्द लें
लेकिन एकांगी चिन्तन से बचकर अध्यात्म को शौर्य से संयुत रखें अध्यात्म कर्मशीलता का तात्विक पक्ष है
शिवो भूत्वा शिवं यजेत्' यानि शिव बनकर शिव की उपासना करें
कर्मठता की नई नई परिभाषा गढ़ें और उसी में एक वृत्ति यह पनप जाए कि हमारे मन में जो कुछ आये उसे हम लिख लें भावनाओं की
यह अभिव्यक्ति समय की बरबादी नहीं है बल्कि समय का सदुपयोग है हमारा आत्मविस्तार है लेकिन उसमें मन रमना चाहिए
अभिव्यक्तियों के और भी माध्यम हैं हम अपनी रुचि के अनुसार उन्हें अपना सकते हैं
अतीत से शिक्षा प्राप्त करें वर्तमान से सन्नद्ध रहें और भविष्य के सपनों के लिए बड़ी से बड़ी सोच रखें और विषम परिस्थितियां आने पर भी उन सपनों को कभी मरने न दें
नर हो न निराश करो मन को
यही मनुष्य जीवन है मनुष्य परमात्मा की अद्भुत अभिव्यक्ति है हमें मनुष्यत्व की अनुभूति हो तो फिर क्या कहना
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय वर्मा भैया पंकज भैया शौर्यजीत का नाम क्यों लिया teleprompter की चर्चा क्यों की
हमारे विद्यालय का गंगातट के किनारे होने का क्या अभिप्राय है जानने के लिए सुनें