उठो जागो मनस्वी लेखको कवियो कलाकारो ,
विकारों स्वार्थों लोभों विरोधों को सुदुत्कारो,
मनस्वी ज्योति को ज्वाला बनाकर हाथ में पकड़ो,
अँधेरों को ज्वलित अंगार की जंजीर से जकड़ो।
प्रस्तुत है रौरव -रिपु ¹ राष्ट्र -गौरव श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*750 वां* सार -संक्षेप
1: रौरव =जालसाजी से भरा हुआ
हम किसी रचनाकार की रचना अगर,
तो फिर हमारा अलग से अस्तित्व कैसा !
और यदि हम व्यक्ति ही खुद में नहीं हैं,
तो कहो फिर स्वयं का व्यक्तित्व कैसा ?
इसलिए सर्वांग शरणागत हुए हम,
चाहते जैसे उसी विधि हम रहेंगे ,
त्याग कर मद मोह ममता दंभ दुविधा,
आप का सबकुछ हमें स्वीकार जब जैसा कहेंगे।।
आचार्य जी का परामर्श है कि जितना परिवेश हमारे साथ संयुत है उसी को हम संसार मानकर उसको प्रणाम करें
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
सीय राम हमें प्रेरणा देते हैं कि हम मनुष्यत्व का नाट्य खेलते हुए शक्ति शौर्य संयम साधना से संयुत हों आत्मतत्त्व को जानें अपने संपूर्ण परिवेश को सुन्दर बनाएं जलकर राख हो गई अनेक अनगिनत विभूतियों वाले इस देश के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को समझें
हो जायँ अभय; भय भ्रम शंका आदि दोषों को दूर कर ,
सुख-शान्ति-हेतु क्रान्ति मचाने का प्रण करें
जगदुपवन के झंखाड़ छाँटें
सीय राम मनचाहा भूगोल बनाने के लिए प्रयासरत होने की प्रेरणा देते हैं अपने भीतर छिपी हुई क्षमता को जानने की प्रेरणा देते हैं हमारी सूझ बूझ की जागृति कराते हैं इधर उधर न बहकर अपने लक्ष्य की ओर चलने के लिए हम संकल्पित रहें यह बताते हैं
अपने अपने गीत एक दूसरे से साझा करते हुए संगठन को मजबूत करने में ही विजय सुनिश्चित है इस विश्वास को सुदृढ़ करते हैं
भारत देश ने अनेक संघर्ष झेलें हैं और हर संघर्ष का हमने सामना किया है विजय प्राप्त की है
हम राष्ट्र का व्रत लेकर अपने सिद्धान्त पर टिके रहें अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् रहें
भ्रष्टाचार का बोलबाला है भ्रष्ट आचरण से भ्रष्ट आचरण कैसे मिट सकता है
अद्भुत दुनिया है
इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है
सबकी बोली सबकी शैली अलग अलग आवाज है
तरह तरह के रंग रूप रुचियों का अद्भुत मेल है
अजब सुहाना अकस्मात् मिट जाने वाला खेल है.... (जून 2014)
देश में परिस्थितियां विषम हैं
ऐसे में हमें अपना चिन्तन एक सुस्पष्ट दिशा की ओर रखना है
तात्विक चिन्तन से शक्ति में वृद्धि होती है लेकिन साथ में व्यावहारिक कार्य विस्मृत न करें गुमनामी में छिपे अपने जैसे विचारशील लोगों को खोजें
हमें काम के बाद परिणाम पर अवश्य विचार करना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया आचार्य जी ने किस व्यक्ति के दुर्गुण न देखने के लिए कहा है जानने के लिए सुनें