प्रस्तुत है ज्ञान -मन्थर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*751 वां* सार -संक्षेप
1: मन्थरः =भण्डार
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
प्रकृति द्वारा बनाए गए इस शरीर रूपी चादर को देवता , नर और मुनि सबने अपने ऊपर डाला और इन तीनों ने ही उसे मैला कर दिया
कबीर कहते हैं मैने जतन से चादर ओढ़ी और ज्यों की त्यों परमात्मा को वापस कर दी।
ऐसा वही कह सकता है जिसने मन,वाणी और कर्म से निष्पाप निर्मल जीवन जिया हो
हम प्रवेश कर चुके हैं ज्ञान के इस अद्भुत मन्थर सदाचार वेला में जिसमें अपने जीवन को संवारने में सहायक अद्भुत रत्न भरे हुए हैं संसार रूपी इस रंगमंच से जब हम उतरें तो द्रष्टाओं द्वारा प्रशंसा के पात्र बनें
ईश्वर से परिव्याप्त ईश्वर की अद्भुत रचना अर्थात् संसार में लिप्त रहते हुए जीवन के इस सात्विक पक्ष को सदाचारमय विचारों से और अधिक उन्नत बनाने में ये वेलाएं महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं
प्रतिदिन ही ये भावमय और व्यवहारमय वेलाएं हमारे लिए रुचिकर और उपयोगी हैं
यदि हम सफल हैं तो अच्छा है लेकिन असफल होने पर समीक्षा करें
उलझनों से हमें घबराना नहीं है संकट कैसे भी आएं लक्ष्य को न त्यागें
सब कुछ ईश्वर का है यह समझकर केवल कर्त्तव्य पालन के लिए ही विषयों का यथाविधि उपभोग करना चाहिए
कुर्वन्नेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरा ॥ २॥
इस सत रज तम के संसार में शास्त्र नियत कर्तव्य कर्मों को करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करें कर्मबन्धन से मुक्ति का दूसरा मार्ग नहीं है
जिस समय पुरुष मन में प्रविष्ट समस्त कामनाओं को त्यागता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है उस समय वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है
हम असारता को सारता और सारता को असारता समझते हैं लेकिन संसार में रमना भी अनिवार्य है रमते हुए मुक्त रहना कठिन काम है
पतन की ओर उन्मुख मनुष्य के अनर्थ के कई कारण हैं
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।
विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है और आसक्ति से ही इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है
क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति का भ्रम
स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नाश से वह मनुष्य ही नष्ट हो जाता है
हमारी भारतीय संस्कृति विचारधारा ऐसी ही अद्भुतता लिए हुए है जो हमारा इस प्रकार मार्गदर्शन करती है
हमारा अवतारवाद कहता है
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।
समाज के चिन्तक सर्वत्यागी ब्राह्मण, देवता, संत और गाय जब कष्ट में होते हैं तो इसका अर्थ है बहुत भयानक स्थिति है
ऐसे में भगवान् राम ने मनुष्य रूप में जन्म लिया और सबके कष्ट दूर किए
आज भी जब ऐसी स्थिति है तो हम अपनी भूमिका को पहचानें हम सब राष्ट्रभक्त राम जी की सेना हैं संगठन के महत्त्व को समझें आत्मस्थ हों
अपनी शक्ति बुद्धि कौशल का प्रदर्शन करें
इसके अतिरिक्त
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