20.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *752 वां*

 हमारा देश मेरे कल्पनाम्बर में समाया है, 

प्रकृति परिवेश बिल्कुल साफ आँखों में नुमाया है ,

उन्हें छोड़ो जहाँ पर बेतरह कूड़ा दिमागों में ,

यहाँ तो दशभक्तों के रगों पर देश छाया है।



प्रस्तुत है आराधयितृ ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 20अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *752 वां* सार -संक्षेप


 1: उपासक


 

हमारी भारतीय संस्कृति में आत्मविश्वास पर बहुत अधिक बल दिया गया है आत्म महत्त्वपूर्ण है  हमें विश्वासी होना ही चाहिए हमारा रचनाकार ईश्वर हमारी चिन्ता करता है ऐसा विश्वास करना चाहिए और यह विश्वास तब होगा जब हम सूक्ष्म  पर ध्यान देंगे संसार में ऐसी स्थितियाँ प्राय: होती रहती हैं जब व्यक्ति स्थूल की पूजा करने लगता है और सूक्ष्म से उसका ध्यान हटा रहता है। अस्थिर चित्त वाला अविश्वासी होता है। आइये अपने चित्त को स्थिर करने के लिए, सूक्ष्मोन्मुख होते हुए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए, अपने कल्पनांबर में भगवान पर विश्वास बनाए रखने के लिए, आत्मशोध में प्रविष्ट होने के लिए, परशोध से प्रायः दूरी बनाए रखने के लिए,स्वाभाविक और बद्ध कर्मों को करते हुए दिव्य कर्मों का विलक्षण आनन्द प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की इस वेला में


गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं 


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।



जो  भक्त भक्तिपूर्वक मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि का अर्पण करता है, उस शुद्ध मन वाले भक्त का वह अर्पण  मैं स्वीकारता हूँ।।



अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।


साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।9.30।।


अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर  यदि मुझे भजता है तो वह भी साधु समान है,कारण स्पष्ट है कि वह यथार्थ निश्चय वाला है।


भक्ति इस संसार के मायारूप से संघर्ष है भक्ति कोई भी हो राष्ट्र -भक्ति, भगवद्भक्ति

हमारे देश की संत परम्परा बहुत लम्बी है संतत्व इस देश की प्राणिक ऊर्जा भी है और रक्षा कवच भी

संत वह नहीं जो किसी से कोई मतलब न रखे जैसा कि भ्रम फैलाया गया

संत को सबसे मतलब होता है वह सबका सुधार करना चाहता है

देश में चुनौतीपूर्ण समय है आगे चुनाव भी हैं हमें अपनी भूमिका स्पष्ट रखनी है

राष्ट्र -भक्त सरकार का कोई विकल्प देश हित में नहीं है इसलिए समाज -जागरण के  दिव्य कर्म की ओर हम ध्यान दें यही संतत्व है सत्पुरुषों का संगठन बनाएं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया

हरिशंकर परसाई का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें