मन रे तू काहे ना धीर धरे
ओ निर्मोही मोह ना जाने जिनका मोह करे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
प्रस्तुत है पलाशन -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*753 वां* सार -संक्षेप
1: पलाशनः =राक्षस
अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः । यत सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्॥
अनेक प्रकार के शास्त्र हैं, बहुत कुछ जानने के लिए है लेकिन समय कम है,बहुत विघ्न हैं।
अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए
जिस प्रकार हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है।
वह सारभूत हमें इन वेलाओं में मिलेगा
प्रातःकाल के इस समय का सदुपयोग करते हुए तत्त्व ग्रहण करने के लिए सदाचारमय विचारों को आत्मसात् कर अपने जीवन को संवारने के लिए चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय में रुचि जाग्रत करने के लिए
आइये प्रवेश करें इस वेला में
हम देखते हैं कि हमारे सारे क्रियाकलाप व्यवहार मन पर आधारित होते हैं
और मन होता कैसा है
इसके लिए आचार्य जी की यह कविता देखिये
मन कभी अतल गहराई में
या समान गगन ऊँचाई में
गिरि शृंगों को रौंदे क्षण में
भयभीत कभी परछाई में ।।
मन का उत्साह निराला है,
पल में सफेद फिर काला है
हर प्राणी का रखवाला मन
मन आफत का परकाला है
मन से हारी हर जुर्रत है,
मन के कदमों में कूबत है।
मन, मन भर का जब हो जाता,
उत्साह गात का सो जाता....
ईश्वर की लीला अद्भुत है हम ईश्वर पर विश्वास रखें हमारे अन्दर बहुत क्षमताएं हैं संसार
में हमने मनुष्य रूप में जन्म लिया है तो अपने मनुष्यत्व को पहचानते हुए आनन्दपूर्वक अपनी यात्रा को हमें पूरा करना चाहिए
वर्तमान में रहने का प्रयास करें कलियुग में योगी होना योग सिद्धि ध्यान सिद्धि आसान नहीं
फिर भी यदि भगवद्भक्ति राष्ट्रभक्ति में मन लगाएंगे तो यह कल्याणकारी होगा
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।
तुम मेरे भक्त हो जाओ , मुझमें मन लगाने वाले हो जाओ , मेरा पूजन करने वाले हो जाओ और मुझे नमस्कार करो ।
इस प्रकार मेरे साथ अपने आपको सन्नद्ध कर , मेरे परायण होकर तुम मुझे ही प्राप्त होगे
मैं तुम्हे यह सत्य वचन देता हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो।।
कलियुग में हरिनाम के अतिरिक्त मंगल प्राप्ति का दूसरा उपाय नहीं है
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
(चै.च.आ. 17/21 संख्याधृत वृह्न्नारादीय-वचन 38/126)
जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है
यह विश्वास रखें
हमारे देश, जो परमात्मा की लीलाभूमि है, में भक्तों की परम्परा अद्भुत गम्भीर और विशिष्ट है
इन भक्तों में हम अच्छाई देखें
खराबी को न देखें यह गुरुत्व है इसकी अनुभूति का अभ्यास करें हमें वरिष्ठों पर विश्वास करना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लखनऊ के डा चौहान जी की चर्चा क्यों की भैया यज्ञदत्त भैया पवन रामपुरिया भैया आलोक का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें