देशभक्त का धर्म है, क्षुद्र स्वार्थ का त्याग।
सत्पुरुषों का संगठन, धरती से अनुराग। ।
प्रस्तुत है कोटिवेधिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*755 वां* सार -संक्षेप
1: बहुत कठिन कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने वाला
कठिन से कठिन कार्यों को आसानी से सम्पन्न करने का हौसला प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास उत्पन्न करने के लिए संसार और सार के बीच वाले मार्ग पर आनन्दपूर्वक चलने के लिए मन को सही दिशा देने के लिए आइये आज की इस भावभूमि पर उतर जाएं और अपने भावों को ध्यानस्थ करने की प्रेरणा ले लें
भाव ध्यानस्थ करने पर हमारी कृति वाणी विचार प्रस्तुति मङ्गलमय हो जाती है
हम देशभक्तों का कर्तव्य है कि क्षुद्र स्वार्थ का त्याग करते हुए हम अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् रहें आज की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हम अपने संगठन को और अधिक सशक्त बनाएं
दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्मों का त्याग न करने की कर्म के फल की इच्छा न करने की सीख देने वाली
गीता का दूसरा अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है संकट विकट होने पर इस अध्याय का अध्ययन करना चाहिए
उसमें बहुत सारी समस्याएं परिलक्षित होती हैं लेकिन भगवान कृष्ण ने उन सारी समस्याओं के हल भी प्रस्तुत कर दिए हैं
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।
स्थितधी का अर्थ है स्थिति को जानना पहचानना
हमारी स्थिति व्यावहारिक सांसारिक आध्यात्मिक सैद्धान्तिक हो सकती है या हम भ्रामक स्थिति में भी हो सकते हैं जो उस स्थिति को जान लेता है वह स्थितप्रज्ञ है
उसकी भाषा क्या है उसका व्यवहार कैसा हो सकता है अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर भगवान् कृष्ण देते हुए कहते हैं
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।
सारी कामनाओं का त्याग करने वाला और स्वयं से संतुष्ट रहने वाला स्थितप्रज्ञ है
दुःखों के मिलने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता और सुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में स्पृहा नहीं रहती और राग भय क्रोध से दूर रहने वाला स्थिरबुद्धि कहलाता है
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.57।।
सब जगह आसक्तिरहित होकर जो मनुष्य शुभ अशुभ के मिलने पर न तो अभिनन्दित होता है और न द्वेष करता है, उस मनुष्य की बुद्धि प्रतिष्ठित है।
इसके अतिरिक्त ऋषियों की भूमिका में कौन है
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