25.8.23

श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *757 वां*

 हम जगत्पिता के अंश वंश देवोपम ऋषियों वाले हैं

 हम हैं प्रकाश के पुंज रूप में मेघश्याम मतवाले हैं

 हम अचल हिमालय की समाधि सागर-लहरों की उथल पुथल

 हम वृंदावन की धूलि और संगम का पावन गंगाजल 


 हम सत्य सनातन वेदमंत्र गीतायुत शुचि समराङ्गण हैं

 पौराणिक कथामंत्र गायक हम आदि सृजन के प्राङ्गण हैं

हम आत्मतुष्ट जगतीतल को परिवार मानने वाले हैं

निज स्वाभिमान के संपोषक जगजीवों के रखवाले हैं



अम्बर को पिता घरित्री को निज माता कहते आए हैं

 भगवान भरोसे रहकर सारे संकट सहते आए हैं

 हम आत्मबोध से युक्त कर्मयोद्धा निस्पृह संन्यासी हैं

 लघु क्षरणशील तन को धारे हम अजर अमर अविनाशी हैं



प्रस्तुत है गुणाकर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 25 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *757 वां* सार -संक्षेप


 1: गुणों की खान



इन सदाचार वेलाओं का अस्तित्व ईश्वर की  अद्भुत गुम्फना है जिसके माध्यम से हम राष्ट्रभक्तों का चिन्तन मनन भाव विचार क्रिया भक्ति संयम श्रद्धा अनुराग सदैव राष्ट्रोन्मुखी करने का संकल्प लेकर आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देते हुए हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं

अपने समय का सदुपयोग करते हुए हम अपने मानसिक    उत्थान  वैचारिक उन्नति सांसारिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए  गुणों की खान इन वेलाओं की प्रतिदिन प्रतीक्षा करते हैं ये हमारे उत्साह की वृद्धि में सहायक हैं इनसे प्रेरित होकर हम समाज -सेवा राष्ट्र- सेवा  करने में आनन्दित होते हैं

ये भाव विचार हमारे मन में प्रतिदिन आने चाहिए और हमें क्रिया में प्रवृत्त हो जाना चाहिए

राम नाम का आश्रय लेकर हम संकटों में घबराते नहीं हैं यह विश्वास रखना चाहिए

जीवन के लक्ष्य पर भी ध्यान दें औपनिषदिक चिन्तन भी अद्भुत है दृष्टि भी स्वच्छ रखने का प्रयास करें सचेत भी रहें समुद्र जैसी गहराई रखें किसी से भयभीत न हों

विचारों से विकृत लोगों से प्रभावित न हों 

साथ ही हमें इन भावों में भी जाना चाहिए कि हम कौन हैं हमारा कर्तव्य क्या है कौन पुरुष ब्रह्म प्राप्ति (परम स्वाद )के योग्य बन जाते हैं

गीता में


बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।


अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।


विशद बुद्धि से युक्त, धृति द्वारा आत्मसंयम कर, शब्दादि विषयों   राग-द्वेष का परित्याग कर,एकांत सेवी, सीमित आहार ग्रहण करने वाला  शरीर, वाणी और मन को संयत करने वाला  ध्यानयोग के अभ्यास में रत वैराग्य पर आश्रित

अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध परिग्रह को त्यागने वाला ममत्वभाव से रहित और अत्यन्त शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य है



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम परस्पर संवाद करें

इसके अतिरिक्त के के मोहम्मद की चर्चा क्यों हुई आचार्य जी दिल्ली में किन भैया से मिलेंगे आदि जानने के लिए सुनें