प्रस्तुत है गुणाढ्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*759 वां* सार -संक्षेप
1: गुणों से समृद्ध
अनन्त गुणों से समृद्ध हनुमान जी बिना थके अनेक काम कर रहे हैं हमारी रक्षा कर रहे हैं वे हमारी प्राणिक ऊर्जा को उचित स्थान पर पहुंचाने के लिए संकल्पित रहते हैं हम उनके भक्त हैं
हम लोगों के भाव विचार बुद्धि शक्ति राष्ट्रानुरागी बनाने के लिए वे नित्य प्रयासरत रहते हैं उनकी कृपा से हमें इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त है हमें जिज्ञासु बनकर इनका लाभ उठाना चाहिए इनके विषय हमें संतुष्ट करते हैं हमें उत्साहित करते हैं और हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं
जड़ चेतन के अद्भुत संयोग वाले इस नाम रूपात्मक जगत, जो काल का चबेना है, की सांसारिकता में ही हम मनुष्य, जो ईश्वर की एक अद्भुत कृति हैं,फंसे न रहे इसलिए संसारेतर चिन्तन के लिए भी प्रेरित करते हैं
झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद | जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ||
(कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग संसार की भौतिक वस्तुओं के उपभोग को सुख मानते हैं वह झूठा सुख है। सच्चा सुख तो ईश्वर की भक्ति में है। यह संसार और इसका भौतिकवाद तो क्षणभंगुर है)
हम धन्य हैं क्योंकि हमारा एक ऐसे दुर्लभ देश भारत में जन्म हुआ है जिसमें हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने वाले अनन्त ऋषि चिन्तक विचारक हुए हैं और उनकी आत्मीयता ने हमें कुमार्ग पर चलने से बचाने का बार बार प्रयास किया है और जिन्हें इस मनुष्यत्व की अनुभूति करने का अवसर नहीं मिल पाया है वे अन्य हैं
मनुष्यत्व की अनुभूति करने पर हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानने लगते हैं
विस्तार लिया यह अपनापन अद्भुत है इसके लिए हमें ईश्वर को बारंबार धन्यवाद देना चाहिए
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
तू दयालु, दीन हौं , तू दानि , हौं भिखारी।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी।1।
नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो।2।
परमात्मा और हमारे बहुत सारे सम्बन्ध हैं इन संबन्धों का विस्तार ही इस संसार का आनन्द है इन संबन्धों में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं
भारत ने तो सदैव संबन्धों की प्रगाढ़ता में विश्वास किया है वियोजन से दूरी बनाई है
इसके अतिरिक्त मेले में भी हम अपने को अकेला क्यों पाते हैं इसका उत्तर जानने के लिए और आचार्य जी ने भैया यज्ञदत्त भैया प्रफ़ुल्लित भैया मनीष कृष्णा भैया शुभेन्दु का नाम क्यों लिया इस जिज्ञासा को शमित करने के लिए सुनें यह संप्रेषण