प्रस्तुत है प्रतूर्ण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*762 वां* सार -संक्षेप
1: फुर्तीला
शिक्षक के रूप में आचार्य जी तो एक उदाहरण हैं ही किन्तु आचार्य जी का सदैव प्रयास रहा है कि वे अपने शिष्यों को इतना प्रेरित कर दें इतना अधिक उत्साहित कर दें उनमें इतनी अधिक ऊर्जा भर दें कि वे भी विश्व के लिए राष्ट्र के लिए समाज के लिए एक उदाहरण बन जाएं
इन सदाचार वेलाओं से आचार्य जी हमें नित्य प्रेरित उत्साहित ऊर्जित करते हैं ईश्वर की यह महती कृपा है
यह विश्वास रखें ईश्वर जो करता है सब अच्छा ही करता है
आइये इन सदाचार वेलाओं से लाभ प्राप्त कर हम बुद्धि शौर्य शक्ति सम्पन्न हो जाएं भय भ्रम मोह मुक्त हो जाएं
समस्याओं से निपटने का हौसला प्राप्त कर पाएं अपने जीवन को उन्नत और समृद्ध बनाने की दिशा में अग्रसर हो जाएं
हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं
वेदों में संसार का ज्ञान है उपनिषदों में अध्यात्म की चर्चा है इसी तरह गीता और मानस भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक ग्रंथ हैं
आइये गीता के दूसरे अध्याय में प्रविष्ट हो जाएं जो गीता का सार भी है
मोह से हम अपना कर्तव्य ही भूल जाते हैं जैसा अर्जुन के साथ हुआ
भगवान कृष्ण मोहग्रस्त ज्ञानी अर्जुन को समरांगण में समझा रहे हैं क्योंकि अर्जुन योद्धा के रूप में अपनी क्रिया को भूल गया है
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।
यह बड़े आश्चर्य और दुःख की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय किए हुए हैं, राज्य और सुख के लालच में स्वजनों को ही मारने के लिये तैयार हो गये हैं
तो भगवान् कहते हैं
श्री भगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।
हे अर्जुन!
इस विषम अवसर पर तुम्हारे अन्दर यह कायरता कैसे आ गई जिससे श्रेष्ठ पुरुष दूर रहते हैं यह कायरता स्वर्ग को देने वाली नहीं है और न इससे कीर्ति मिलेगी
ज्ञान को ज्ञान से ही शमित किया जा सकता है और यही भगवान कृष्ण ने किया
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
वेद त्रिगुण के कार्य को ही वर्णित करते हैं
हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ , निर्द्वन्द्व हो जाओ, परमात्मा में लीन हो जाओ , योगक्षेम की चाह मत रखो
आत्मा नदी संयम पुण्यतीर्था सत्योदकं शील तटा दयोर्मि । तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुद्धयते चान्तरात्मा ।
आचार्य जी इसकी व्याख्या करके बताते हैं कि
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।
ऊपर की ओर मुख किए मूल वाले तथा नीचे की ओर मुख किए शाखा वाले जिस संसार रूपी अश्वत्थवृक्ष को अव्यय कहते हैं वेद जिसके पत्ते हैं, उस संसार रूपी वृक्ष को जो व्यक्ति जानता है, वह सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता है
आचार्य जी ने इसके विस्तार में और क्या बताया भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ आज आचार्य जी कहां आये हुए हैं आदि जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सूचना दी कि आज उन्नाव विद्यालय में कार्यक्रम है इसके बाद दो सितम्बर और तीन सितंबर को भी कार्यक्रम हैं तीन को कवि गोष्ठी में
१. श्री अंसार कम्बरी जी कानपुर २. डॉ. सुरेश अवस्थी जी कानपुर ३. डॉ. कमल मुसद्दी जी कानपुर ४. श्रीमती व्याख्या मिश्र जी लखनऊ ५. श्री अतुल बाजपेयी जी लखनऊ ६. श्री प्रख्यात मिश्र जी लखनऊ ७. श्री कुमार दिनेश जी उन्नाव ८. डॉ. पवन मिश्र जी कानपुर पधार रहे हैं