4.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 4 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 736 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अनुष्ठातृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 4 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  736 वां सार -संक्षेप


 1: अनुष्ठान करने वाला


स्थान : वाहन (चित्रकूट जाते समय )


 वैदिक काल के ऋषि,दार्शनिक,वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसेनीय शाखा के द्रष्टा,शतपथ ब्राह्मण के रचनाकार, नेति नेति के व्यवहार के प्रवर्तक याज्ञवल्क्य और भारतीय नारियों की मेधा की सबसे बड़ी प्रतीक, ब्रह्मवादिनी,राजा जनक के दरबार की दार्शनिक विदुषी  मित्र ऋषि की पुत्री मैत्रेयी के बीच संवाद में संसार को स्वार्थ का ही पर्याय माना गया है किन्तु हम  मनुष्य संसार और परमात्मतत्त्व के संमिश्रित स्वरूप हैं लेकिन जब हमारा मनुष्यत्व संसारोन्मुखी होता है तो उसमें हमें शौर्य धैर्य पराक्रम चिन्तन मनन  विचार स्वाध्याय लेखन संघर्ष आदि बहुत कुछ सामञ्जस्यपूर्ण शैली में व्यवहृत करना होता है।

इसमें चूक होने पर हम पुरुषार्थी नहीं कहे जाते

हम अपनी जीवनशैली में भ्रमित होने पर एकांत खोजने लगे और हमें लगने लगा कि हमको किसी से मतलब नहीं रखना चाहिए ऐसे अध्यात्म का कोई अर्थ नहीं 

यह कहकर शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता और अनिवार्यता की ओर आचार्य जी संकेत कर रहे हैं

संगठित होकर समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी होना अपना उद्देश्य है

आध्यात्मिक आत्मोन्मुखता में परमार्थ परिलक्षित होता है और सांसारिक आत्मोन्मुखता में स्वार्थ दिखता है


हमारे यहां संघर्षशील पुरुषार्थियों की एक लम्बी पंक्ति है

एक लक्ष्य बनाना और फिर उस उद्देश्य को पाने में किसी भी समस्या का सामना करने में भयग्रस्त न होना उन्हें महापुरुष बना गया



महाराणा प्रताप बन्दा बैरागी वीर शिवा जी गुरुगोविन्द सिंह आदि हमारे आदर्श के विग्रह हो गये सभी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को साथ लेकर चले

इन्हीं के पदचिह्नों पर चलने वाली हमारी सेना साधनों के अभाव में भी विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है

मानस का एक प्रसंग है जब भयग्रस्त भ्रमित विभीषण कहते हैं


नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥

तो भगवान् राम कहते हैं 

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥


आत्मबोध के साथ हम समाज -देवता को समझें और किसी भी परिस्थिति में व्याकुल न हों मार्ग खोजें

कर्म -पथ पर चल दें संगठन बनाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी के साथ कौन से भैया साथ जा रहे हैं चित्रकूट में अन्य स्थानों से कौन कौन आ रहा है जानने के लिए सुनें