बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने
यही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है
प्रस्तुत है अनुष्ठायिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 5 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
737 वां सार -संक्षेप
1: अनुष्ठान करने वाला
स्थान :चित्रकूट
संसार अत्यन्त अद्भुत है संसार न अच्छा है न बुरा
अपनी मानसिक अवस्था के अनुसार ही हमें यह संसार अच्छा या बुरा लगता है।
संसार में कभी कुछ पूर्ण नहीं होता यहां कार्य व्यापार कभी बन्द नहीं होते इसलिए संसार के इस स्वभाव को समझते हुए अपने शरीर के संसार का सामञ्जस्य बैठाएं
हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए जिससे हमारा सम्मान हो
हमें सेवा समर्पण के साथ करनी चाहिए समाज और राष्ट्र (वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः )के लिए हमें निःस्वार्थ भाव से कार्य करने चाहिए
अपना समय देना चाहिए व्यस्त होते हुए भी
व्यस्त हैं या अस्त -व्यस्त हैं यह चिन्तन का विषय है
हम व्यस्त समय में भी अपनी जीवनशैली को बदलने का प्रयास करें व्यावहारिक जगत
भी महत्त्वपूर्ण है अपने परिवार की भी हमें चिन्ता करते रहना है परिवार को आनन्दमय ढंग से चलाना चाहिए परिवार को संवारकर संभालकर चलें
सांसारिक स्वरूप को जानते हुए हमें सदैव कामना करनी चाहिए कि दुःख और सुख में
हम समान बने रहें
दुःख में न अधिक दुःखी और न सुख में बहुत अहंकारी
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥
उदय और अस्त होते समय जैसे सूरज देव लाल होते हैं उसी तरह महापुरुष भी सुख और दुःख में समान रहते हैं।
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।
इस तरह के सूत्र सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना आसान तो नहीं है लेकिन हमें प्रयास करते रहना चाहिए
सदाचार के नियमों के पालन से शरीर का परिमार्जन संमार्जन होता है व्याकुलता भ्रम भय में अपनी ऊर्जा नष्ट होती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने,
वृद्ध पुरुष की मानसिक सेवा शारीरिक सेवा से अधिक महत्त्वपूर्ण है, किस तरह स्पष्ट किया
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